अब आकाशीय बिजली की भविष्यवाणी करना संभव

अक्सर ही हम सुनते हैं कि मानसून  यानी की बारिश के मौसम के दौरान देश के विभिन्न राज्यों में बिजली गिरने की घटनाएँ होती हैं, जिनमें बहुत लोगों की मौत हो जाती है  । एक तरफ जहां कुछ लोग इसे ईश्वर की दैवीय आपदा मानते हैं तो वहीं कुछ लोग यह जाने के लिए भी काफी उत्सुक रहते हैं कि आखिर ये आकाशीय बिजली कैसे उत्पन्न होती है और यह धरती से कैसे टकराती है । अब क्लाइमेट रेसिलियंट ऑब्जर्विंग सिस्टम्स प्रोमोशन काउंसिल, जो एक गैर लाभकारी संगठन है, इस पर अपने एक रिपोर्ट जारी की है ।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में मानसून के 4 महीनों में करीब 1,311 मौतें इस साल बिजली गिरने से हुई है और इस 4 महीने के अंदर देशभर में करीब 65.55 लाख बिजली गिरने की घटनाएँ सामने आई हैं । जिनमें से 23.55 लाख घटनाएँ क्लाउड तो क्लाउड लाइटनिंग के रूप में घटित हुई और पृथ्वी पर पहुंची हैं । रिपोर्ट के अनुसार 41.7 फीसदी घटना ऐसी रही है जो बादलों तक ही सीमित रह गई । इस संस्था से जुड़े वैज्ञानिकों ने लाइटनिंग स्ट्राइक के अध्ययन और निगरानी के माध्यम से पता किया है कि धरती पर गिरने वाली यह आकाशीय बिजलियां की भविष्यवाणी 30 से 40 मिनट पहले करना संभव है और इस तरीके से काफी लोगों की जान बचाई जा सकती है ।

भारतीय मौसम विभाग ने इस तकनीक को 16 राज्य में एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू करने की मंजूरी दे दी है और इस साल इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत मोबाइल पर मैसेज के माध्यम से आकाशीय बिजली के पूर्वानुमान और चेतावनी से संबंधित जानकारी को मैसेज के माध्यम से लोगो तक पहुँचना शुरू हो गया है लेकिन यह अभी पूरे देश भर में लागू नहीं है । संस्था द्वारा जारी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि उड़ीसा में 90 हजार से भी अधिक बिजली गिरने की घटनाएँ दर्ज की गई है जो कि किसी भी राज्य में एक तरीके से सबसे अधिक बिजली गिरने की घटना है ।

इस गैर लाभकारी संस्था की रिपोर्ट को तैयार करने के पीछे मकसद यह रहा है कि आकाशीय बिजली के लिए एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित की जाए और लोगों में जागरूकता को बढ़ाया जाए जिससे कि आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों को रोका जा सके और लोगो की मदद की जा सके । पृथ्वी एक सुचालक है और विद्युत के प्रति तटस्थ रहते हुए यह बादलों की मध्य परत की तुलना के अपेक्षाकृत अपने ऊपरी परत में सकारात्मक ऊर्जा से चार्ज होती है और यही वजह है कि इससे पृथ्वी पर करीब 20 से 25 फीसदी बिजली गिरने की घटनाएं होती हैं ।

दो इलेक्ट्रॉन आपस में टकराते हैं तब और अधिक इलेक्ट्रान बनाते हैं और इस तरीके से एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया की चैन बन जाती है और ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे बादल की ऊपरी परत सकारात्मक ऊर्जा से चार्ज हो जाती है और जब बीच में नकारात्मक रूप से चार्ज परत भी होती है तो दोनों विपरीत एनर्जी वाले आपस में तेजी से टकरा जाते हैं और इन्हीं के टकराने की आवाज हमें गड़गड़ाहट के रूप में सुनाई देती है और इनके टकराने से जो घर्षण उत्पन्न होता है उसी से बिजली पैदा होती है और आकाशीय बिजली गिरने की घटना होती है ।

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