एक ऐसा चावल जिसे आप बिना पकाये खा सकते है
असम में एक ऐसा चावल पाया जाता है जिसे आप बिना पानी में उबाले खा सकते हैं । इस चावल का नाम है बोका चाउल (चावल) या असमिया मुलायम चावल (ओरीजा सातिवा) । नलबारी, बारपेटा, गोलपाड़ा, बक्सा, कामरूप, धुबरी, और कोकराझर असम के ये जिले हैं जहाँ इसकी खेती बहुतायत से होती है । किसी ज़माने में ये मुग़ल सैनिकों का मुख्य राशन हुआ करता था ।
बोका चाउल (चावल) का इतिहास 17 वी से जुड़ा है । बिना ईंधन के आप इसे पका सकते हैं बस आप को सामान्य तापमान पर इसको थोड़ा सा पानी में भिगोना होगा । चना मुंग या बादाम अंकुरित होने के बाद जैसा होता है ये चावल भी वैसा ही हो जायेगा ।
बोका चाउल (चावल) को जीआई टैग के साथ पंजीकृत किया गया है । ये टैग उन उत्पादों को दिया जाता है जिनकी उत्पति किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में हो । भारत में मुगा सिल्क, जोहा राइस और तेजपुर लीची के बाद यह एक मात्र उत्पाद है जिसको ये जीआई टैग मिला है । असम राज्य का अब इस चावल पर अब जीआई टैग मिलने क़ानूनी अधिकार हो गया है।
बोका चाउल (चावल) को असम के लोग गुड़, दूध, दही, चीनी या अन्य बस्तुओं के साथ कहते हैं । इस चावल का उपयोग स्थानीय पकवानो में भी किया जाता है ।
लोटस प्रोगरेसिव सेंटर के संस्थापक हेमंत बैश्य ने इस चावल को 2016 में जीआई टैग के लिए आवेदन किया था । लोटस प्रोगरेसिव सेंटर की स्थापना 1999 में चावल की किस्मो की संरक्षण करने के उदेश्य से की गयी थी ।
बोका चाउल (चावल) को असम के लोग जून के महीने में बोते है और दिसंबर के महीने में इसे काटते हैं।
यह खाने में स्वादिस्ट और अत्यधिक पौष्टिक भी है । बोका चाउल (चावल) में 10.73 प्रतिशत फाइबर सामग्री और 6.8 प्रतिशत प्रोटीन है, गौहाटी विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के एक अध्ययन में इसका खुलासा हुआ ह।