गोड्डा के इस गांव में गजब की कृषि क्रांति, बैंगन के पौधों से लटके टमाटर
बैंगन के पौधों से टमाटर को साल भर ताजा ही लीजिए। चौंकिए मत, यह विज्ञान का चमत्कार है। झारखंड के गोड्डा के कनभरा गांव में बैंगन के पौधों पर टमाटर भी उगाए जाते हैं।
इसमें ग्राफ्टिंग विधि का प्रयोग किया गया। खास बात यह है कि बैंगन के पौधे से टमाटर के साथ बैगन भी मिलेगा। एक पौधे से छह महीने में 40 किलो से अधिक फल प्राप्त किए जा सकते हैं।
हरगौरी कृषक संघ के अमरेंद्र कुमार, जो कांभरा गांव में रहते हैं, कहते हैं कि टमाटर के पौधों को ग्राफ्टिंग विधियों का उपयोग करके बैंगन के पौधों पर लगाया गया था।
इन 600 पौधों को हमने अपनी नर्सरी में तैयार किया है। यह प्रयोग सरकंडा गांव में अजीत कुमार महात्मा के बगीचे में भी हुआ। यहां जमीन में बैंगन के पौधे से टमाटर का ग्राफ्ट बांधा गया।
ऐसे शुरू करो
अमरेंद्र का कहना है कि वह रांची में एक कृषि विज्ञानी डॉ. विजय से मिलीं। उन्होंने इस तरीके की जानकारी दी। यहीं से गोड्डा में इसकी शुरुआत हुई।
खास बात यह है कि इस तरह की खेती करते हुए किसान मौसम में भी ताजा टमाटर का लुत्फ उठा सकते हैं।
क्योंकि टमाटर के पौधे को बैंगन के पौधे से पोषण मिलेगा। ग्राफ्टिंग द्वारा तैयार किए गए टमाटर के स्वाद और पोषण मूल्य का कोई नुकसान नहीं होता है।
अब बड़े पैमाने पर होगी खेती
अधिक पानी होने पर भी बैंगन की जड़ सड़ती नहीं है। बैंगन के पौधे छह महीने और टमाटर तीन महीने तक जीवित रहते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए बैंगन के पौधे से टमाटर का प्रत्यारोपण किया जाता है।
तो टमाटर को साल में दो बार बैगन उगाकर भी प्राप्त किया जा सकता है। प्रयोग सफल रहा। इन पौधों को अपनी नर्सरी में तैयार कर लें। बगीचे में भी लगाया।
बैंगन और टमाटर दोनों भी खिल रहे हैं। किसान भी इसकी खेती के लिए उत्साहित हैं। दर्जनों किसानों ने प्रायोगिक आधार पर रोपण के लिए प्रतिरोपण के लिए तैयार किए गए दो-दो पौधे दान में दिए। अब इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जाएगी।
देश में सब्जी उत्पादन के लिए ग्राफ्टिंग विधि का प्रयोग छोटे पैमाने पर किया जाता है। अमरेंद्र कुमार ने पहली बार इसकी शुरुआत कांभड़ा में की थी। ग्राफ्टिंग उन्नत तकनीक वाली सब्जी उत्पादन विधि है। पूंजी भी कम। इस फसल के लिए यहां की मिट्टी भी अच्छी है।
-चिकित्सक। रविशंकर, वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, गोड्डा
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