चंद्रयान -2 के आर्बिटर को मिली चंद्रमा के बारे वातावरण के बारे में जानकारी
भारत का चंद्रयान 2 मिशन विक्रम लैंडर से संपर्क टूट जाने की वजह से पूरी तरीके से सफल नहीं था । लेकिन चन्द्रयान 2 से जुड़ा ऑर्बिटर काम कर रहा है । मालूम हो कि चन्द्रयान-2 जब चंद्रमा की सतह पर लैंड कर रहा था तो इसरो का विक्रम आर्बिटर से संपर्क टूट जाने के कारण चंद्रयान 2 मिशन आंशिक रूप से असफल हो गया था ।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चन्द्रयान-2 के विक्रम लैंडर से संपर्क साधने की अपनी कोशिशें जारी रखा लेकिन विक्रम लैंडर से संपर्क नहीं हो पाया । लेकिन अब चन्द्रयान-2 के साथ गया ऑर्बिटर सफलतापूर्वक काम कर रहा है अब चन्द्रयान -2 ऑर्बिटर ने चंद्रमा के बारे वातावरण के बारे में जानकारियां हासिल की है ।
चंद्रयान 2 के आर्बिटर ने यह पता लगाया है कि चंद्रमा के बाहरी वातावरण में आर्गन 40 है और इस बात की जानकारी इसरो ने ट्वीट करके दी ।
चंद्रमा के बारे वातावरण जानकारी के लिए चन्द्रयान -2 ऑर्बिटर पर चंद्र कंपोजीशन एक्सप्लोरर 2 पेलोड मौजूद है ।
यह पेलोड न्यूट्रल मास स्पेक्ट्रोमीटर पर आधारित है जो कि 1-300 एएमयू परमाणु द्रव्यमान इकाई की सीमा में चंद्रमा के उदासीन बाहरी वायुमंडल के हस्तको का पता लगाने से सक्षम है । चन्द्रयान-2 ऑर्बिटर अपने शुरुआती ऑपरेशन के दौरान 100 किलोमीटर की ऊंचाई से चंद्रमा के बाहरी वायुमंडल में आर्गन 40 होने का पता लगाया है और दिन रात की गतिविधियों को कैप्चर भी कर रहा है ।
चंद्रमा की सतह पर ऑर्गन तापमान में बदलाव और दबाव पड़ने पर संघनित होने वाली गैस है । आर्गन 40 चंद्रमा पर पड़ने वाली लंबी रात के दौरान साधन हो जाती है जबकि जब चंद्रमा पर दिन होता है तब आर्गन 40 यहां से निकल करके बाहरी वायुमंडल में जाने लग जाती है ।
चंद्रमा पर दिन और रात के समय चन्द्रयान 2 की एक परिक्रमा के दौरान आर्गन 40 में आने वाले अंतर का विश्लेषण किया गया । मालूम हो कि आर्गन गैस का इस्तेमाल औद्योगिक क्षेत्र के कामकाज में ज्यादा किया जाता है ।
यह फ्लोरेसेंट लाइट और बिल्डिंग के काम में भी इस्तेमाल होती है । आर्गन गैस की मदद से सालों साल किसी वस्तु को यथावत उसी स्थिति में संरक्षित रखा जा सकता है । आर्गन गैस की मदद से ही ठंडे ठंडे वातावरण को रूम टेंपरेचर पर भी रखा जा सकता है ।
इसलिए जब गोताखोर गहरे समुद्र में उतरते हैं तो उनकी पोशाक में आर्गन गैस का उपयोग किया जाता है । आर्गन 40 चंद्रमा के बाहरी वायुमंडल को बनाने में महत्वपूर्ण योगदान करती है ।
यह नोबल गैस यानी कि निष्क्रिय गैस जो किसी भी अन्य गैस के साथ क्रिया नहीं करती है, का एक आइसोटोप्स यानी कि तत्व के अलग-अलग प्रकार के अणुओं में से एक अणु है ।
आर्गन 40 पोटेशियम 40 के रेडियोधर्मी विघटन की वजह से उत्पन्न होता है । रेडियम पोटैशियम 40 चंद्रमा की सतह के काफी नीचे मौजूद है । पोटैशियम 40 ही विघटित हो कि आर्गन 40 बन जाती है जिसके बाद आर्गन गैस चंद्रमा की अन्दरूनी साथ में मौजूद कणों के बीच रास्ता बनाते हुए बाहर निकल कर चंद्रमा के बाहरी वायुमंडल तक पहुंच जाती है ।
खगोल विज्ञान में चंद्रमा के चारोंओर गैस के घेरे के आवरण को लूनर एक्सोस्फीयर यानी चांद का बाहरी वातावरण नाम दिए हैं । चंद्रमा का बाहरी वातावरण इतना हल्का है कि गैसों के परमाणु एक दूसरे से बहुत कम टकराते हैं ।