जम्मू कश्मीर में अलगाववादी पार्टियों का इतिहास

जम्मू कश्मीर  को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया गया है जिसे एक ऐतिहासिक फैसला कहा जा रहा है जम्मू कश्मीर के साथ अक्सर सुनने में आता रहा है अलगाववादी पार्टियाँ या फिर हुर्रियत नेता के बारे में या हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के बारे में दरअसल हुर्रियत कान्फ्रेंस  ऐसा संगठन है जो जम्मू कश्मीर में अलगाववादी  विचारधारा को प्रोत्साहित करता है बात 1987 की है जब कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन करके जम्मू कश्मीर में चुनाव लड़ने का फैसला किया था इस बात का घाटी में बहुत विरोध हुआ था लेकिन इस चुनाव में फारूख अब्दुल्ला की पार्टी ने भारी बहुमत से जीत हासिल कर अपनी सरकार बनाई थी

इनके विरोध में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट को केवल 4 सीटें ही मिली थी और ऐसा माना जाता है कि इसी के विरोध में 1993 में ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस की नीव रखी गई थी, जिसका काम घाटी में अलगाववादी आंदोलनों को गति प्रदान करना था यह कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के खिलाफ छोटीछोटी पार्टियों का महागठबंधन था इनका पाकिस्तान को लेकर काफी  नरम रवैया रहा और ये पाकिस्तान से अपनी नज़दीकियां अक्सर दिखाते रहे हैं 1990 के दशक में यह पार्टी चुनाव लड़ कर एक राजनैतिक चेहरा भी बनाने की कोशिश की थी जिसे वहां की आवाम ने नकार दिया

अक्सर हुरिर्यत कॉन्फ्रेंस पर विदेशों से पैसा लेकर घाटी में अलगाववादी विचारधारा और आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है और इस पार्टी के नेताओं पर अक्सर देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप भी लगा है और तो और कई मौकों पर इनका संबंध घाटी में आतंकवाद से भी देखने को मिला है हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं में एकमत नहीं है इस पार्टी में शामिल कुछ नेता कश्मीर को भारत से अलग करके एक अलग देश बनाना चाहते हैं तो कुछ नेता ऐसे हैं जो कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल करना चाहते हैं

इस पार्टी के नेताओं का कहना है कि यह भारत पाकिस्तान और जम्मू कश्मीर के लोगों के साथ मिलकर एक वैकल्पिक हल निकालना चाहते हैं इनका कहना है कि ये एक सामाजिक धार्मिक और राजनैतिक संगठन है जो जम्मू कश्मीर के लोगों के बीच रहकर संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक शांतिपूर्वक संघर्ष को बढ़ावा देने का काम करेंगे और यहां के लोगों को आज़ादी दिलाएंगे इस तरह देखे तो हुर्रियत कांफ्रेंस का इतिहास बहुत पुराना नही है

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