बढ़ते प्रदूषण पर न नियंत्रण हुआ तो सामने आएंगे और भी ज्यादा गंभीर परिणाम
आर्कटिक की बर्फ काफी तेजी से पिघल रही है जिसकी वजह से यहां के हालात के बिगड़ने का खतरा हो गया है । शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि आर्कटिक के बर्फ पिघलने की दर यही रही तो इससे आर्कटिक क्षेत्र के जलवायु में अचानक से बदलाव आ सकता है ।
आर्कटिक क्षेत्र में होने वाले बदलाव पूर्व के सभी अनुमान से भी कहीं ज्यादा भयावह हो सकता है । एक नए शोध में यह दावा किया गया है कि आने वाले समय में जंगलों में लगने वाली आग की घटनाओं में इजाफा हो सकता है ।
नेचर क्लाइमेट चेंज जनरल प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि कनाडा के कई क्षेत्रों के जंगलों में आग लगने की घटना में तीव्रता आने वाले समय में दुगनी हो जाएगी ।
कनाडा के मैकगिल यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता का कहना है कि “हमने जलवायु परिवर्तन में क्लाइमेट इंजीनियरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर (सड़कों,बंदरगाहों, इमारतों, पाइप लाइनों और खनन ढांचों) के परस्पर प्रभाव को लेकर अध्ययन किया ।
अध्ययन खास करके और आर्कटिक के इंफ्रास्ट्रक्चर को बर्फ के पिघलने समेत मृदा की नमी में बदलाव और दूसरे कारकों के प्रभाव का अध्ययन किया है । इसके पहले भी आर्कटिक पर बर्फ की मोटी परतो को लेकर कई सारे अध्ययन किए जा चुके हैं ।
जिनमें आर्कटिक पर कुछ प्रभाव के साथ बर्फ को धीमी गति से पिघलना पाया गया था । शोधकर्ताओं का कहना है कि आर्कटिक की जलवायु की हाई रेज्युलेशन मॉडलिंग अभी तक नहीं की गई है । लेकिन हमारे शुरुआत के कई परीक्षणों में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आई हैं ।
इसके पहले आर्कटिक पर किए गए शोध 20 से 30 साल पुराने मॉडल पर आधारित होते थे और मौजूदा अध्ययन नई तकनीक नई मॉडल के आधार पर किया गया है । इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्तां टेफेल के अनुसार ‘ एझ अध्ययन को करने के लिए हमने 1970 से 2019 तक की अवधि जलवायु मॉडल के डेटा का उपयोग किया ताकि यह समझा जा सके कि आखिर आर्कटिक के जलवायु के बदलने के संभावित कारण क्या हो सकते है..?
उन्होंने कहा कि इस अध्ययन के परिणाम बहुत चिंताजनक है और यदि समय रहते नहीं चेता गया तो भविष्य में हमें और ज्यादा भयानक परिणाम देखने को मिल सकते हैं ।
शोध से जुड़े अन्य शोधकर्ताओं का कहना है कि आर्कटिक क्षेत्र में हो रहे अप्रत्याशित मौसमी गतिविधियों के चलते यहां के पौधे तेजी से मर रहे हैं और वैश्विक औसत तापमान की तुलना में आर्कटिक क्षेत्र के तापमान में 2 गुना तेजी से वृद्धि देखने को मिल रही है ।
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ शेफील्ड के वैज्ञानिकों का कहना है कि आर्कटिक में होने वाले इन बदलावों के कारण पौधों के मर जाने से वहां के जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव और भी तेजी से बढ़ सकता है और यदि ऐसा होता है तो यहां का ईको सिस्टम जलवायु परिवर्तन से लड़ने में अक्षम हो जाएगा ।
इसलिए जल्द से जल्द मानव की उन गतिविधियों पर नियंत्रण करने की जरूरत है जिनसे कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है और अन्य कारकों पर नियंत्रण करने की जरूरत है जो पर्यावरण को किसी न किसी रूप में प्रदूषित कर रहे हैं । यदि समय रहते नहीं किया जाता तो स्थिति काफी भयानक हो जाएगी और इस पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकेगा ।