31 जुलाई और भारत में मोबाइल क्रांति: भविष्य मोबाइल से दूर एक अकल्पनीय सच रच रहा है, बेहद अलग होगी कल की सूरत
क्या अब मोबाइल फोन को भी तिलांजलि देकर हाथ को मुक्त करने का वक्त आ चुका है?31 जुलाई, 1995 को भारत में मोबाइल क्रांति शुरू हुई।
पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री सुखराम से इस दिन पहली बार मोबाइल कॉल कर बात की थी।
वैसे दुनिया में 3 अप्रैल, 1973 को मोटोरोला के इंजीनियर मार्टिन कपूर ने अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनी के एक कर्मचारी डॉ. जोएल एस. एंगेल से सबसे पहले मोबाइल पर बातचीत की शुरुआत की, पर यह बाजार में 10 साल बाद यानी 1983 को आया।
अब जब असल मोबाइल दुनिया के रंग में आने के 50 साल जल्द ही पूरे होने जा रहे हैं, तो सवाल वाजिब हैं कि दुनिया भर की उपयोगी चीजों यथा घड़ी, कैलकुलेटर, कैमरे, पेजर आदि को गटक जाने वाला और लैपटॉप, सीडी प्लेयर को हजम करने की कोशिशों में लगे मोबाइल की उल्टी गिनती शुरू होने में कितने दिन बाकी हैं?
जबाव है- मुट्ठी से तकदीर, मां और जीवनसाथी के हाथ को जुदा कर दुनिया को अपने तक सीमित कर देने वाले मोबाइल के मौजूदा रूप के भी ज्यादा दिन शेष नहीं हैं, शायद 10 वर्ष!
हो सकता है कि यह अपने बदले हुए अवतारों में अगले 30 वर्षों तक जिंदा रहे, लेकिन 2050 आने तक शायद कोई इसका नामलेवा भी ना हो…कैसे? आइये जानने व समझने के प्रयास करते हैं।
मोबाइल की कहानी और हमारी जिंदगी
यकीन मानिए, मोबाइल को सबसे पहली पटखनी यही सेगमेंट देने वाला है। करीब 2002 में जब सर्वाधिक लोकप्रिय और चर्चित उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक से मिला था, तो उन्होंने तंज कसा था कि आधुनिक इंसान का एक हाथ जेब ने जकड़ लिया था, दूसरा अब मोबाइल ने।
यानी समस्याएं शुरुआत से ही नजर आने लगी थीं। हालांकि, यह बहुत शुरुआती दौर था और तब मोबाइल चंद इंसानों के पास ही मौजूद थे।
कॉल करना बेहद महंगा था। फिर भी, समझदारों को अंदाजा नहीं था कि मोबाइल देखते ही देखते इतना हाईटेक हो जाएगा कि हाथ में दुनिया समा जाएगी और घर-परिवार की शांति, आपसी बातचीत, चिटि्ठयां और लगभग सब कुछ भी गेमिंग, टिकटाक, वाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम की भेंट चढ़ जाएंगे।
चूंकि, तकनीक उम्मीदों से भी कहीं तेज रफ्तार से परवाज भर रही है, इंसान व्यस्त दर व्यस्त होता जा रहा है तो मोबाइल फोन को तिलांजलि देकर हाथ को मुक्त करने का वक्त आ चुका है, ताकि अन्य काम किए जा सकें। तो, श्रीमानजी अब मोबाइल हथेली से निकलकर हाथ पर बंधने जा रहा है।
असल में मोबाइल का यह रूप रिस्ट वॉच जैसा होगा। भारत के गांवों की और बेहद संसाधनहीन लोगों की बातें छोड़ दें तो बड़ी संख्या में लोगों की कलाई पर फोन बंधे नजर आने शुरू भी हो गए हैं।
लेकिन, यह अभी भी प्राथमिक स्थिति में हैं और अधिकतर को जेब में रखे फोन से कनेक्ट करने की भी आवश्यकता रहती है।
लेकिन, चिंता ना करें, फेसबुक, गूगल, एप्पल, हुवेई, सोनी जैसी कंपनियां इस दिशा में तेजी से काम कर रही हैं। ये स्मार्ट वॉच डिस्प्ले के साथ शानदार कैमरों से भी लैस होंगी, जो कलाई से अलग भी किए जा सकेंगे।
फिल्मों से समझिए आपके निकट भविष्य को
दरअसल, भविष्य की दुनिया की सूरत फिल्मों में सबसे पहले दिखती है। आपको पहली मिशन इम्पॉसिबल याद है जिसमें ईथन हंट और अन्य जासूस इन्हीं हाथ घड़ियों के जरिए वीडियो कॉल करते हैं।
तो यह तकनीक भी जल्द अमल में आने वाली है जिसमें एप्स डाउनलोड करके हर वो काम किया जा सकेगा, जो आप आज मोबाइल से करते हैं।
इन वॉच का उपयोग करने के लिए उसे स्मार्टफोन से कनेक्ट करने की जरूरत भी नहीं होगी। यही नहीं, कलाई की गतिविधियों के माध्यम से कंप्यूटर को भी नियंत्रित किया जा सकेगा।
खास बात यह भी है कि ये स्मार्ट वॉच आपके स्वास्थ्य का भी ख्याल रखेंगीं। ऑक्सीजन लेवल, शुगर लेवल व दिल की धड़कनें आदि मापेंगीं।
कितनी कैलोरी, कैसे खर्च की हैं, बताएंगीं। आपको इस बात पर भी गौर करना होगा कि कोरोना महामारी के दौर में भी जहां वियरेबल्स गैजेट्स जैसे स्मार्टवॉच और फिटनेस बैंड की सेल में तेज ग्रोथ दर्ज की गई है, वहीं दुनियाभर में स्मार्टफोन की सेल में गिरावट दर्ज की गई है।
2020 में रिकॉर्ड 527 मिलियन वियरेबल्स की बिक्री हुई है। यह पहली बार है, जब वियरेबल्स की सेल ने आधे से ज्यादा बिलियन की सेल हासिल की है।
एनालिस्ट की मानें, तो वियरेबल्स की सेल में ग्रोथ का सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। एक अनुमान के मुताबिक इस दशक के आखिरी तक वियरेबल्स बिक्री के मामले में स्मार्टफोन को पीछे छोड़ देंगे। 2025 तक ही वर्ल्ड वाइड 1.2 बिलियन वियरेबल्स डिवाइस बिक्री का अनुमान है।
ऐसे ही 1994 में आई फिल्म “ट्रू लाइज’ याद है जिसमें अर्नोल्ड श्वार्जनेगर एक ऐसा चश्मा पहनते हैं जिसमें ग्लास पर लगे छोटे से स्क्रीन डिस्प्ले में आसपास क्या घटित हो रहा है, सब दिखता है।
इसी आधार पर गूगल कंपनी ने अपना गूगल ग्लास पेश किया। हालांकि, इसकी सफलता को लेकर बहुत दावे तो नहीं किए जा सकते, लेकिन वर्चुअल रियलिटी उपकरणों के नए-नए पैमाने गढ़े जाने के परिदृश्य में वैज्ञानिकों को इसमें संभावनाएं बहुत दिखाई दे गई हैं।
दुनिया की कई नामी कंपनियां चश्मे में ऐसे जादू भरने के प्रयासों में हैं, जिनका सिर्फ अंदाजा ही लगाने से मुंह से वाह-वाह निकल पड़ेगी।
असल में ये ऐसे चश्मे होंगे, जो हर चेहरे पर फिट हो सकेंगे। एक बार चार्ज करने पर इनमें 140 इंच तक का ओएलईडी टीवी भी दिखेगा।
हालांकि, अभी तक इसके प्रोसेसर के बारे में ज्यादा जानकारी सामने नहीं आ पाई है, लेकिन बड़ी आसानी से यह ब्लूटूथ के जरिये आपकी सभी से बात करवाएगा।
जरा सी आवाज पर या चश्मे पर लगे मिनी बटनों से नंबर डायल हो जाएंगे, 125 मेगा पिक्सल के फोटो खिंच जाएंगे, एचडी वीडियो कॉलिंग होगी। और तो और पता भी नहीं चलेगा कि आप लोगों को देख रहे हैं कि टीवी पर फिल्में देख रहे हैं।
इसमें यूएसबी भी लगी होगी ताकि रैम पर स्टोरेज का लोड खाली किया जा सके। बेहद छोटे आकार में सभी कंपोनेंट बिठाने के चलते बैटरी की खपत भी कम होगी।
कंपनियों को इसकी सबसे बड़ी दिक्कत यही दूर करनी है कि आंख के इतने पास रहने के चलते डिस्प्ले से कोशिकाओं को कोई नुकसान नहीं पहुंचने पाए। साथ ही उन्हें 5जी व 6जी के साथ भी तालमेल बिठाना है।
होलोग्राफिक कम्युनिकेशन, जब बदल जाएगी दुनिया :-
नित नए स्वरूप में छोटे दर छोटे होने के साथ तेज दर तेज होते जा रहे प्रोसेसर्स मोबाइल की बातें करने, फोटो खींचने जैसी आवश्यकताओं को अनूठे संस्करण में पेश करने के लिए तत्पर हैं।
हालांकि, इसकी अनेक सीमाएं हैं। इसमें जेब पर लगा पैन या शर्ट अथवा बैकपैक पर टंगा बटन आपकी लोगों से बातें करवा देगा, फोटो खींच सकेगा।
हालांकि, यह काम्पेक्ट स्वरूप भी खासा आकर्षित करने वाला है, किंतु डिस्प्ले ना होने से वीडियो कॉलिंग, गेमिंग व ढेर सारी अन्य सुविधाओं से वंचित रहना होगा।
इसके बावजूद, स्टिंग ऑपरेशन आदि के मद्देनजर इस तरह की वियरेबिल डिवाइस की मांग भी भविष्य में कम नहीं होगी।
अवेंजर्स हो या, किंग्समैन अथवा रेजीडेंट ईविल सीरीज सभी में लोग आपस में होलोग्राफिक कम्युनिकेशन ही स्थापित करते हैं।
हालांकि, यह जूम, गूगल मीट आदि के जरिये एक-दूसरे से जुड़ने जैसा है, लेकिन सबसे बड़ा फर्क यह है कि इसमें एक व्यक्ति अपनी टीम के सदस्यों से आमने-सामने खड़े होके, या कुर्सी पर बैठके ऐसे बातें करता है।
जैसे वे एक ही कमरे में उपस्थित हों। हमें तो बाद में पता चलता है कि एक के अलावा बाकी सब सदस्य दुनिया के अलग-अलग छोर पर बैठे थे।
भविष्य इसी रीयल टाइम होलोग्राफिक कम्युनिकेशन का है जिस पर बड़ी से बड़ी कंपनियां जल्द से जल्द अधिकार जमा लेना चाहती हैं।
यह होलोग्राफिक डिवाइस कुछ भी हो सकती है यथा एक छोटी सी पेन ड्राइव, शर्ट के बटन, पेन, कार की चाबी, गुलदस्ता, पेपरवेट, स्पंज बॉल, आदि-आदि। बस एक क्लिक पर कम्युनिकेशन शुरू, जिसमें मां-पिता अपने बच्चों को स्पर्श करने का अनुभव तक ले सकते हैं।
यही नहीं, दूर बैठे ही तकनीशियन मशीनों की सही मरम्मत कर देंगे, दूर बैठे-बैठे डॉक्टर सर्जरी कर देंगे और कक्षाओं में बेहतर दूरस्थ शिक्षा दी जा सकेगी।
अंतरिक्ष में सुदूर ग्रहों का सफर करते यात्री, विमानों में उड़ान भरते पायलट व समुद्री अभियानों में जुटे नाविक अथवा सीमा पर आतंकियों के ठिकाने नेस्तनाबूद करने के रास्ते खोज रहे कमांडो इसी के जरिये अपनी समस्याओं को वरिष्ठों व विशेषज्ञों के सामने हूबहू रखकर मार्गदर्शन हासिल कर सकते हैं, बेहतर राह निकाल सकते हैं।
होलोग्राम का संचार के माध्यम के रूप में उपयोग करने के साथ ही इसका फायदा यह भी होगा है कि हम बेहद सक्षम भावना-संवेदी उपकरण पहनेंगे, जो हमारे मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य की नियमित निगरानी करेंगे, सलाह देंगे, बातचीत को अत्यंत सुविधाजनक एवं मित्रवत बनाएंगे, और हमारे हर संवाद व संचार अनुभव को बेहतर बनाएंगे क्योंकि इनके उपयोगकर्ता भी कोई साधारण मनुष्य नहीं रहेंगे, वे भविष्य के नेटवर्क के निर्माण खंड बन जाएंगे।
होलोग्राफिक इमेज को बदस्तूर रखने के लिए समस्या अभी नेट की स्पीड की है, जो कि कम से कम टेराबिट प्रति सेकेंड हो तो ही मजा आएगा।
क्योंकि होलोग्राफिक छवियों को कई दृष्टिकोणों से संचारित करने की आवश्यकता होगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि 6जी स्पेक्ट्रम आने के बाद तो होलोग्राफिक कम्युनिकेशन का एकाधिकार हो जाएगा। शायद इसमें 20 से 25 साल और लगें।
असल में होलोग्राफिक कम्युनिकेशन में 6जी तकनीक का भी बराबर का खेल होगा, जो कि इंटरनेट ऑफ स्किल्स या यूं कहें कि इंटरनेट पर व्यक्तियों के कौशल को संचारित करने की क्षमता प्रदान करेगी।
आज इंटरनेट पर ऑडियो और वीडियो शेयर किए जा सकते हैं, उनमें बदलाव किया जा सकता है, लेकिन हम इंटरनेट के माध्यम से वस्तुओं को छू नहीं सकते, या उन्हें स्थानांतरित नहीं कर सकते।
लेकिन, उनका कहना है कि धारदार होती जा रही कंप्यूटिंग, रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, संवर्धित वास्तविकता और 6जी संचार के एकीकरण से यह संभव हो सकेगा।
वैज्ञानिकों की मानें तो यह अगली पीढ़ी का इंटरनेट मनुष्य के कौशल काे ठीक उसी तरह हर जगह पर सभी की पहुंच में ले आएगा, जिस तरह से इंटरनेट सूचनाओं काे ले आया है।
जब हम टेलीपैथ बनेंगे और फिर..!
आधुनिक मनुष्य की आदिम इच्छा रही है कि वह बिना किसी आधार या यंत्र के दूसरे के मन के विचारों को पढ़ ले, अपने विचारों से दूसरों को बगैर कुछ कहे अवगत करा दे। यही आधुनिक विज्ञान की भाषा में टेलीपैथी है।
इसमें यह भी जरूरी नहीं कि हम किसी से संपर्क करें, हम दूरस्थ बैठे किसी भी व्यक्ति की वार्ता को सुन सकते हैं, देख सकते हैं और उसकी स्थिति को जान सकते हैं।
वैसे भारतीय मनीषियों ने कहा है कि हर व्यक्ति में छठी इंद्रीय होती है, जिसके जरिए वह जान लेता है कि दूसरों के मन में क्या चल रहा है।
साथ ही दूसरों से संपर्क भी कर सकता है। कोई व्यक्ति जब किसी के मन की बात जान ले या दूर घट रही घटना को पकड़कर उसका वर्णन कर दे तो उसे पारेंद्रिय ज्ञान से संपन्न व्यक्ति कहा जाता है। संजय ने इसी क्षमता से दूर चल रहे महाभारत युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र को कह सुनाया था।
लेकिन, मौजूदा वैज्ञानिक संवाद-संचार संदर्भों में यह सिर्फ देखना-सुनना, घटनाएं जान लेना नहीं है। यह बगैर कुछ बाेले, एक-दूसरे से बात करना है।
दूर बैठे-बैठे हर वो चीज शेयर करना है, जो आज हम मोबाइल के जरिये सोचते हैं, अथवा आने वाले कुछ समय में करने की योजनाएं बना रहे हैं। सोचिए तो सही कि वह दुनिया कैसी होगी जिसमें हजारों, लाखों टेलीपैथ होंगे।
यकीन करना मुश्किल जरूर है, पर फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग तो करीब 6 साल पहले ही भविष्यवाणी कर चुके हैं कि आने वाला संवाद-संचार टेलीपैथी से ही होगा।
टेस्ला के एलन मस्क भी ऐसा ही सोचते हैं कि अगले 10 वर्षों में बातचीत के लिए होठ हिलाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। मनुष्य के मस्तिष्क में लगाई गई एक नन्ही सी चिप “न्यूरालिंक’ सारा संवाद सीधे दिमाग से ही करने की सहूलियत प्रदान कर देगी।
हालांकि, यह विचार नया नहीं है। पुराने सोवियत रूस में इस तरह की शोध गतिविधियों जिसे उन्होंने बायोलॉजिकल कम्युनिकेशन नाम दिया, काे बेहद बढ़ावा दिया गया।
यहां तक दावे किए गए कि भविष्य में युद्ध दिमाग की टेलीपैथी ताकत से ही लड़े जाएंगे। यही नहीं, वे ऐसी साइकोट्रॉनिक मशीनें बनाने के बारे में आगे बढ़ रहे थे जिससे लोगों के दिमाग को पढ़ा ही नहीं जा सके, उसमें बदलाव भी किए जा सकें।
बहरहाल, हर तकनीक के अपने खतरे तो रहेंगे ही, इसलिए फिलहाल अच्छी टेलीपैथ दुनिया को ही लेकर आगे बढ़ें जिसके लिए प्रयास करने वाले मस्क अकेले नहीं हैं, दुनिया के अन्य बिलियनेयर भी लोगों के दिमागों पर ऐसे ही अधिकार जमा लेने की दौड़ में हैं जो कि मोबाइल को मनुष्य के मस्तिष्क में रख देने जैसा है।
अब यह कितने वर्ष में होगा, कहना संभव नहीं है, पर असंभव तो नहीं ही है। बस आप इंतजार करिए भविष्य के अनगिनत अकल्पनीय सच के साकार होने का।
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31 जुलाई, 1995 को भारत में मोबाइल क्रांति शुरू हुई। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री सुखराम से इस दिन पहली बार मोबाइल कॉल कर बात की थी।
वैसे दुनिया में 3 अप्रैल, 1973 को मोटोरोला के इंजीनियर मार्टिन कपूर ने अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनी के एक कर्मचारी डॉ. जोएल एस. एंगेल से सबसे पहले मोबाइल पर बातचीत की शुरुआत की, पर यह बाजार में 10 साल बाद यानी 1983 को आया।
अब जब असल मोबाइल दुनिया के रंग में आने के 50 साल जल्द ही पूरे होने जा रहे हैं, तो सवाल वाजिब हैं कि दुनिया भर की उपयोगी चीजों यथा घड़ी, कैलकुलेटर, कैमरे, पेजर आदि को गटक जाने वाला और लैपटॉप, सीडी प्लेयर को हजम करने की कोशिशों में लगे मोबाइल की उल्टी गिनती शुरू होने में कितने दिन बाकी हैं?
जबाव है- मुट्ठी से तकदीर, मां और जीवनसाथी के हाथ को जुदा कर दुनिया को अपने तक सीमित कर देने वाले मोबाइल के मौजूदा रूप के भी ज्यादा दिन शेष नहीं हैं, शायद 10 वर्ष! हो सकता है कि यह अपने बदले हुए अवतारों में अगले 30 वर्षों तक जिंदा रहे, लेकिन 2050 आने तक शायद कोई इसका नामलेवा भी ना हो…कैसे? आइये जानने व समझने के प्रयास करते हैं।