भारत और आर्मेनिया के बीच हुआ बड़ा रक्षा समझौता

भारत और आर्मेनिया के बीच हुआ बड़ा रक्षा समझौता

भारत ने आर्मीनिया के साथ बड़ा रक्षा समझौता किया है । यह समझौता करीब 280 करोड़ों रुपए के बराबर है । मालूम हो कि आर्मेनिया ईसाई बहुल देश है । भारत आर्मेनिया के लिए हथियारों की पहचान करने वाले रडार का उत्पादन करेगा । यह संख्या में 4 रडार होंगे । मालूम है कि आर्मेनिया के साथ रक्षा समझौता करने के मामले में रूस और पोलैंड की कंपनियां भी थी लेकिन यह समझौता भारत के साथ हुआ है ।

सरकारी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार रडारों का निर्माण भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन डीआरडीओ और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा किया जाएगा । यह दोनों कंपनियां मिलकर रडार का निर्माण करेंगी । सूत्रों से मिली जानकारी में बताया है कि भारत एक रडार की सप्लाई आर्मेनिया को कर दिया है ।

भारत और आर्मेनिया के बीच हुए इस रक्षा समझौते को एक बड़ी उपलब्धि बताया जा रहा है क्योंकि इन रडारों का उत्पादन मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के तहत होंगे । आर्मेनिया को भारत का उत्पाद ज्यादा अच्छा लगा क्योंकि भारतीय उत्पाद में विश्वसनीयता ज्यादा बेहतर थी । इसके पहले आर्मेनिया ने पोलैंड और रूस के हथियारों का भी परीक्षण कर चुका है ।

बता दें की रक्षा समझौते के तहत रडारों की आपूर्ति भारत अर्मेनिया को करेगा । इन रडारों की खासियत यह है कि यह रडार दुश्मन देशों के हथियार की तलाश करेगा और उन्हें नष्ट करने के लिए वहां की सेना की मदद करेगा । मालूम हो कि ये रडार तेज गति उसे चलने और ऑटोमेटिक रूप से दुश्मन के हथियारों की लोकेशन का सही पता लगाने वाले मोटरों, गोला बारूद और रैकेट से लैस है ।

इनकी मारक क्षमता 50 किलोमीटर की रेंज को बताया जा रहा है । रडार की मदद से यह पता लगाना आसान हो सकता है कि हमले किस जगह से किये जा रहे है तथा रॉकेट लॉन्चर किस जगह पर डाले जा रहे हैं । उनकी दूरी को भी यह ट्रेस करता है । सारी जानकारी में इस प्रकार की सहायता के लिए बस चंद मिनटों में हासिल हो जाएगी ।

यह दुश्मन के किसी भी हथियार को चंद मिनट में तबाह करने की क्षमता रखते हैं । यह रडार अपने दुश्मन देशों की हथियारों की निगरानी करने और उन्हें जवाब देने के लिए हैं । इन रडारो का ज्यादातर इस्तेमाल सीमा क्षेत्र पर किया जाता है जहां पर अक्सर गोलाबारी जैसी घटनाएं होती रहती हैं । भारत में इसे स्वदेशी प्रणाली से बनाया है और भारतीय सेना में यह शामिल है ।

रक्षा विभाग के कुछ अधिकारियों का मानना है कि भारत और आर्मेनिया के बीच हुए इस रक्षा समझौते से भारत आने वाले समय में अपने रक्षा प्रणाली और हथियारों की बिक्री अहय देशो को भी कर सके । इस तरह से भारत को और भी बाजार मिलने की संभावना बढ़ जाएगी ।

भारत के रक्षा मंत्रालय की कोशिश यह है कि भारत को दक्षिण पूर्व एशिया, लैटिन अमेरिका तथा पश्चिम एशिया के देशों के साथ इस तरह के रक्षा समझौते हो जाये और भारत इन देशों को अपने हथियार बेचे । भारत सरकार के द्वारा बजट में रक्षा क्षेत्र के उपकरणों के निर्यात का एक लक्ष्य निर्धारित किया गया है जिसे रक्षा मंत्रालय हर हाल में पाने की कोशिश में लगा हुआ है ।

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