वैज्ञानिकों ने नई तकनीक ईजाद की, अब बिना दर्द के जुड़ेगी टूटी पसलियाँ
अब बिना दर्द के जुड़ेगी टूटी पसलियाँ क्या संभव है आईये जानते हैं । विज्ञान प्रतिदिन नई-नई खोजें करता जा रहा है जो मानव जीवन को आसान बनाने के साथ-साथ राहत भी प्रदान कर रहा है और कई सारे लोग को समय के पहले मौत के मुंह में जाने से रोकने का भी काम करता है । पहले के जमाने में जहां कई सारी बीमारियों का इलाज संभव नहीं था आज के समय में कई सारी लाइलाज बीमारियों का भी इलाज संभव हो गया है या फिर उनकी रोकथाम की जा सक रही है ।
अब वैज्ञानिकों ने सर्जरी करने की नई तकनीक विकसित की है जिससे टूटी हुई पसलियों को जल्दी से जोड़ा जा सकेगा और इस सर्जरी के दौरान किसी भी प्रकार के दर्द का सामना भी नहीं करना पड़ेगा ।
अभी तक जो तकनीक उपचार में लाई जा रही थी उससे पसलियों को जोड़ने की प्रक्रिया में काफी ज्यादा समय लगता था साथ ही बहुत ज्यादा दर्द का भी सामना करना पड़ता है । अमेरिका में करीब एक दर्जन मेडिकल सेंटर के शोधकर्ताओं ने सर्जिकल स्टेबलाइजेशन आफ फैक्चर प्रक्रिया का परीक्षण किया है । इसमें परीक्षण में पसलियों के दोनों छोर को एक प्लेट के जरिए जोड़ा गया है ।
यह पसली के दुरुस्त होने की पूरी प्रक्रिया के दौरान लगाया जाता है जब दो या दो से ज्यादा तीन या अधिक पसलियां टूट जाती हैं तब एसएसआरएफ से गुजरना पड़ता है और इस दौरान नई प्रक्रिया के जरिए पीड़ितो को कम दर्द का एहसास हुआ ।
मेडिकल यूनिवर्सिटी आफ साउथ कैरोलिना के एक सर्जन एरिकसन का कहना है कि शोध से जाहिर होता है कि फेफड़ों की समस्या से पीड़ित लोगों को भी इस नई तकनीक से लाभ हो सकता है । शोधकर्ताओं ने एक ऐसा टूल विकसित किया है जिससे कम उम्र के बच्चों और किशोरों में डिप्रेशन की समस्या को सालों पहले ही पता लगाया जा सकता है क्योंकि आजकल देखा जाता है कि बड़ों के साथ-साथ बच्चों में भी मानसिक बीमारियां होने की संभावना बढ़ गई है ।
इस तरीके से आने वाले समय में नई तकनीकी से किशोरों और बच्चों में होने वाली मानसिक बीमारियों पर नजर रखी जा सकेगी और नई विधियां ईजाद करने का भी रास्ता खुलेगा । शोधकर्ताओं का कहना है कि प्री डिटेक्टिव बच्चों में अवसाद की पहचान करने में मदद कर सकता है ।
18 वर्ष की उम्र से पहले गंभीर डिप्रेशन का शिकार हो सकने वाली बच्चों का पता लगाया जा सकता हैं । इस शोध का निष्कर्ष कई हजार किशोरों के ऊपर किए गए एक शोध के आधार पर निकाला गया है ।
ब्रिटेन के किंग्स कॉलेज लंदन के शोधकर्ता मोन्डेली के अनुसार यह नया शोध टूल विकसित करने की दिशा में यह पहला महत्वपूर्ण कदम है जिससे किशोरों में डिप्रेशन की समस्या की पहचान की जा सकती है और मानसिक सेहत को दुरुस्त करने में इस टूल के जरिए मदद मिलेगी ।