क्या इलेक्ट्रॉनिक वाहन वायु प्रदूषण की समस्या को हल करने में लाभदायक हो सकते हैं?

क्या इलेक्ट्रॉनिक वाहन वायु प्रदूषण की समस्या को हल करने में लाभदायक हो सकते हैं?

बढ़ते वायु प्रदूषण के बीच सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या इलेक्ट्रॉनिक वाहन वायु प्रदूषण की समस्या को हल करने में लाभदायक होंगे? दरअसल साल 2019 के वित्त वर्ष में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश में इलेक्ट्रॉनिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए उसके खरीददारों को आयकर में छूट देने की बात कही थी।

इसके अलावा ऐसे वाहनों पर जीएसटी की दर 12% से घटाकर 5% कर दी गई थी। बता दें कि इसके पहले साल 2015-16 से साल 2018-19 के बीज हाइब्रिड और इलेक्ट्रॉनिक वाहनों के उत्पादन और उनको बढ़ावा देने के मकसद से फेम इंडिया योजना के तहत इस सेक्टर को 529 करोड़ रुपए बतौर इंसेंटिव प्रदान किया गया था।

इन दिनों दिल्ली सरकार भी इलेक्ट्रॉनिक वाहनों के प्रयोग को बढ़ावा दे रही है। दिल्ली सरकार दोपहिया इलेक्ट्रॉनिक वाहन खरीदने पर ₹30,000 और इलेक्ट्रॉनिक कार खरीदने पर डेढ़ लाख की सब्सिडी देने की बात की है।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह इलेक्ट्रॉनिक वाहन वायु प्रदूषण की समस्या को हल कर सकते हैं लेकिन क्या वास्तव में यह वायु प्रदूषण की समस्या को हल करने का एक श्रेष्ठ साधन है।

बता दें कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बिजली उत्पादक देश है। आज के समय में भारत में 3.63 लाख मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है।

लेकिन सबसे बड़ी समस्या भारत के सामने यह है कि भारत में जितने भी बिजली उत्पादित की जाती है उसकी 54 फ़ीसदी बिजली कोयले के प्लांटों के जरिए उत्पादित होती है।

यह प्लांट कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन जैसी गैसों का उत्सर्जन बड़ी मात्रा में करते हैं। नीति आयोग ने इसके संबंध में एक आंकड़ा जारी किया है।

नीति आयोग के आंकड़े के अनुसार बिजली उत्पादन के लिए कोयले से चलने वाले प्लांट पर भारत की निर्भरता 2030 तक 51% हो जाएगी जो अभी 47% है। इसी तरह परिणाम स्वरूप कोयले की खपत में भी वृद्धि होने की संभावना है।

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कोयले की वृद्धि होने से प्रतिवर्ष उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा भी बढ़ेगी और यह 159 करोड़ से बढ़कर 432 करोड़ हो जाने की आशंका जताई जा रही है।

पार्टिकुलेट मैटर सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन आदि का उत्सर्जन भी की दुगना हो जाने की संभावना है। ऐसे में वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली बीमारियों से होने वाली मौतें दुगनी हो सकती है। बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भारत के पास फिलहाल कोयला ही सबसे बड़ा और उपलब्ध विकल्प रह गया है।

बता दें कि इलेक्ट्रॉनिक वाहनों को चार्ज करने के लिए बिजली की मांग बढ़ेगी और इस बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए अधिक कोयले को जलाने की जरूरत पड़ेगी जिससे पर्यावरण को नुकशान पहुचने वाली गैसों का उत्सर्जन भी बढ़ेगा।

बता दें कि आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड जैसे राज्य में कोयला प्लांट की क्षमता को बढ़ाया जा रहा है। वहीं कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तर प्रदेश में स्थित प्लांट की क्षमता को भी दुगना किये जाने की आवश्यकता महसूस हो रही है। अगर इनकी क्षमता को बढ़ाया जाएगा तब इससे प्रदूषण भी अधिक बढ़ेगा।

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बता दें कि साइंस एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी में शामिल शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत में कोयला प्लांट दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषक तत्वों का उत्सर्जन कर रहे हैं।

ऐसे में यदि भारत में इलेक्ट्रॉनिक वाहनों को बढ़ावा दिया जाएगा तब यह वायु प्रदूषण का समाधान नही बल्कि समस्या की वजह बन सकता है और इनकी वजह से समस्या बढ़ जाएगी ।

क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक वाहनों की चार्जिंग बिजली के जरिए होती है और बिजली की मांग बढ़ने की वजह से इसका उत्पादन अधिक किया जाएगा और अधिक बिजली उत्पादन के लिए अधिक कोयले का इस्तेमाल होगा तो इससे पर्यावरण प्रदूषण बढ़ेगा। ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक वाहन वायु प्रदूषण को रोकने का का विकल्प नहीं हो सकते हैं।

वर्तमान परिवेश के हिसाब से सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को और बेहतर पर्याप्त और सुविधाजनक बनाया जाना जरूरी है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग निजी वाहनों के बजाय सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करें।

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