जानते हैं कैसे दुनिया के हर बच्चे का भविष्य है खतरे में

जानते हैं कैसे दुनिया के हर बच्चे का भविष्य है खतरे में

दुनिया के हर बच्चे का भविष्य खतरे में पड़ गया है । विश्व स्वास्थ्य संगठन यूनिसेफ और एक नामी मेडिकल जनरल ‘द लांसेट’ की एक संयुक्त रिपोर्ट में यह बात सामने आई है । रिपोर्ट के अनुसार परिस्थितिकी क्षरण, पर्यावरण में बदलाव और मार्केटिंग की शोषणकारी नीतियों के चलते दुनिया के हर देश का के बच्चे का भविष्य खतरे में पड़ गया है ।

घातक ग्रीन हाउस गैसों का उत्पादन सबसे ज्यादा अमीर देशों में होता है लेकिन इसका खामियाजा गरीब देशों को भुगतना पड़ता है और इसका सबसे खराब असर बच्चों पर पड़ रहा है । इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 20 सालों में शिक्षा, पोषण और जीवन काल में बढ़ोतरी होने के बावजूद बच्चों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है ।

विश्व भर के 40 विशेषज्ञों द्वारा इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है जिसमें बताया गया है कि साल 2015 में स्टैंडर्ड्स डेवलपमेंट गोल को सहमति दी गई थी, लेकिन 5 साल बीतने के बाद भी इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए मात्र कुछ ही देश इसके लिए जरूरी कदम उठाए हैं ।

यही कारण है कि हमारे पर्यावरण में बदलाव, आबादी के स्थानांतरण, परिस्थितिकी, सामाजिक असमानता और मार्केटिंग के गलत तरीकों की वजह से बच्चों का भविष्य और स्वास्थ्य खतरे में है । इस रिपोर्ट में पर्यावरण आपातकाल के इस दौर में बच्चे के सुरक्षित भविष्य के लिए बदलाव बेहद जरूरी है ।

रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्केटिंग की शोषणकारी नीतियों की वजह से बच्चों की सेहत खराब हो रही है । इस रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 1975 में पूरी दुनिया में 1.10 करोड़ बच्चे मोटापा के शिकार थे, लेकिन साल 2016 में यह आंकड़ा बढ़कर 12.40 करोड़ हो चुका है । इसके पीछे कंपनियां शोषणकारी नीत है, क्योंकि कंपनियां फास्ट फूड और पेय पदार्थों की बिक्री बढ़ाने के लिए मार्केटिंग के गलत तरीके अपना रही हैं और ये बच्चों को अपना निशाना बनाते हैं ।

इस रिपोर्ट में स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, जीवित रहने की क्षमता, जीवन का आनंद जैसे मापदंडों के आधार पर 180 देशों की तुलना की गई है और समाज की असमानता, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन जैसे मानक का भी आकलन किया गया । इस आधार पर इस रिपोर्ट में बताया गया है कि नार्वे,दक्षिण कोरिया, नीदरलैंड फ्रांस और आयरलैंड बच्चों के विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ देश में शामिल है ।

वही सोमालिया, नाइजीरिया, माली इस लिहाज से बेहद खराब देशों में शामिल है । अगर प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के नजरिए से देखा जाए तो 10 देशों में नर्वे और सोमालिया बच्चों के शुरुआती वर्षों के लिए बेहतर हैं जबकि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और सऊदी हालत अरब इसमें सबसे खराब हालत में है ।

रिपोर्ट में कहा गया है कि नार्वे , कोरिया और नीदरलैंड जैसे देश बच्चों के विकास के लिए तो बेहतर है । लेकिन प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड के मामले में उनका प्रदर्शन खराब है । ये देश फिलहाल अपने 2030 के लक्ष्य से 230% ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कर रहे हैं । केवल 9 देश ऐसे हैं जो 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के अपने लक्ष्य को हासिल करने के साथ ही बच्चों के बेहतर जीवन के लिए अच्छा काम कर रहे हैं । ये 9 देश अल्बानिया, आर्मीनिया, ग्रेनाडा, जॉर्डन, मोल्दोवा, श्रीलंका, ट्यूनीशिया, उरूग्वे और वियतनाम है ।

विशेषज्ञों का मानना है गरीब देशों को अपने बच्चों के भविष्य के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे, लेकिन अमीर देशों द्वारा ग्रीन हाउस गैसों पर नियंत्रण न रखने की वजह से यह उनका भविष्य असुरक्षित बना रहे हैं ।

यूनिसेफ के स्वास्थ्य मामलों के प्रमुख स्टीफन पीटरसन का मानना है कि सबसे गरीब देश के बच्चे पर्यावरण में होने वाले बदलाव से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं, जबकि उनके देश में ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन उतना नहीं होता है । इस रिपोर्ट के अनुसार यदि कार्बन उत्सर्जन का यह दौर बरकरार रहा तो साल 2100 तक  ग्लोबल वार्मिंग की वजह से तापमान में 4 डिग्री सेंटीग्रेड तक की बढ़ोतरी हो जाएगी, जिसकी वजह से समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा, गर्मी बढ़ेगी और डेंगू – मलेरिया जैसी बीमारियां भी बढ़ेंगे और इनकी चपेट में सबसे ज्यादा बच्चे ही आएगे ।

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