आइये जाने कैसे होता है कोरोना के मरीजों का इलाज

आइये जाने कैसे होता है कोरोना के मरीजों का इलाज

कोरोना वायरस काफी तेजी से दुनिया के 200 से अधिक देशों में फैल गया है । इससे मरने वालों की संख्या 2 लाख से भी अधिक हो गई है लेकिन अभी तो किसके लिए कोई भी एक निश्चित दवा या इलाज ऐसा नही खोजा जा पाया है जो बहुत ज्यादा कारगर साबित हो लेकिन इसके लिए दिन-रात वैज्ञानिक शोध में जुटे हुए हैं ।

कोरोना वायरस से मरने वालों का आंकड़ा दो लाख से अधिक है लेकिन लाखों लोग ऐसे भी हैं जो कोरोना वायरस से ठीक हो रहे हैं । ऐसे में सवाल आता है कि आखिर इन मरीजों को कौन सी दवा दी जा रही है या फिर उनका इलाज कैसे किया जा रहा है ?

इसके लिए डेढ़ सौ से ज्यादा दवाओ पर शोध हो रहा है । दुनिया भर में कोरोना वायरस से ठीक हो चुके मरीजों के खून का सैंपल लेकर अन्य मरीजों पर उन्हें इस्तेमाल किया जा रहा है क्योंकि कोरोना वायरस से ठीक हो चुके मरीजों का प्लाज्मा इस वायरस से संक्रमित व्यक्तियों को दिया जाता है जिससेवैसे मरीज़ जल्दी से अपने अंदर एंटीबॉडी विकसित कर सकें ।

एंटीबायोटिक ड्रग्स सीधे कोरोना वायरस के मरीज के शरीर की क्षमता को प्रभावित करते हैं । इसीलिए कोरोना वायरस के इलाज के लिए ठीक हो चुके मरीजों के खून से एंटीबॉडी तैयार करके या फिर लैब में एंटीबॉडी तैयार करके उसका इस्तेमाल हो रहा है ।

वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉक्टर ने चीन का दौरा करने के बाद कहा कि रेमडेसीवीर ही एकमात्र ऐसी दवा है जो सबसे ज्यादा करोना वायरस के मरीजों पर असर कर रही है । मालूम हो कि इस दवा की खोज सबसे पहले इबोलस वायरस के दौरान की गई थी । यह दवा सार्स और मर्स से जुड़ी बीमारियों में इस्तेमाल होती आई है और कोरोना वायरस के इलाज में काफी असरदार साबित हुई है ।

कोरोना के इलाज में एचआईवी की दवा लोपिनवेर और रिटोनवीर दवा का इस्तेमाल होने की बात आई थी परीक्षण में सफलता भी मिली थी लेकिन इंसानों पर यह ज्यादा कारगर नही रही। मलेरिया के लिए इस्तेमाल होने वाली क्लोरोक्वीन और उस से बनी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन किसी भी वायरस के प्रति प्रतिरोधी क्षमता के साथ ही या इंसानों की प्रतिरोधी क्षमता को शिथिल करने में काम करती है इसलिए इसे रिकवरी ट्रायल और सॉलिडेट टेस्ट में इस्तेमाल हो रहा है ।

यही वजह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप में बड़ी मात्रा में यह दवा भारत से आयात की । लेकिन इसके असरदार होने के भी बहुत कम ही प्रमाण मिले हैं । दरअसल इस दवा का इस्तेमाल आर्थराइटिस के इलाज में भी किया जाता है क्योंकि यह प्रतिरोधक क्षमता को नियमित बनाने में सहायक है । प्रयोगशाला में हुए परीक्षण से या पता चला के इस दवा का इस्तेमाल कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए किया जा सकता है । हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि अभी इसकी कोई सुनिश्चित परिणाम नहीं मिल पाए हैं ।

ऐसे में अगर प्रतिरोधक प्रणाली वायरस के खिलाफ ज्यादा काम करती है तो शरीर में सूजन आने की संभावना बढ़ जाते हैं । ऐसे में प्रतिरोधक प्रणाली पर अगर भरोसा कर लिया जाए और इसे बढ़ाने वाली दवा दी जाए तो इससे शरीर के अंगों में दूसरे तरह के नुकसान पहुंच सकते हैं और यह जानलेवा भी हो सकती है ।

ट्रायल में फिलहाल इनटवेराबेटा का भी परीक्षण किया जा रहा है इसका इस्तेमाल कई सारी परेशानियों को दूर करने के अलावा सूजन को कम करने में होता है । यह एक ऐसा रसायन है जो वायरस के हमला करने की स्थिति में शरीर में प्रतिरोधक का काम करता  है । इसके लिए ब्रिटेन में डेक्सामेथासोन का परीक्षण भी वह या एक तरह से स्टार्ट है और सूजन को कम करने में बहुत मददगार होता है ।

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