इस मॉडल के अनुसार मास्क पहने और सोशल डिस्टेंसिंग से कोरोना वायरस पर पा सकते है काबू

इस मॉडल के अनुसार मास्क पहने और सोशल डिस्टेंसिंग से कोरोना वायरस पर पा सकते है काबू

दुनिया भर में कोरोना वायरस (COVID-19) टीकाकरण अभियान चल रहा है। लेकिन उसके बावजूद इस जानलेवा वायरस के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। भारत में इसका कहर चरम पर है।

भारत में देखते ही देखते कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर देखने को मिल रही है।

दरअसल लोगो को अब लंबे समय तक सामाजिक दूरी और मास्क से पीछा छुड़ाना मुश्किल नजर आ रहा है।

यह बिल्कुल सच है कि मास्क पहनकर और सामाजिक दूरी बनाकर कोरोना वायरस को फैलने से काफी हद तक रोका जा सकता है।

लेकिन इन दोनों को एक साथ लागू करने पर इसका असर किस तरह से पड़ेगा कोई भी ठीक ठीक जानकारी नहीं दे सकता है।

न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के केओस और इटली के पालिटेक्नीको दी टोरिनो के शोधकर्ताओं ने कहा है कि कोरोना वायरस हवा से फैलने वाली बीमारी है और मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग के प्रभाव पर अध्ययन करने के लिए उन्होंने एक मॉडल विकसित किया है।

उस मॉडल में यह बताया गया है कि संक्रमण के प्रकोप से किस प्रकार से बचा जा सकता है। अगर 60 फ़ीसदी आबादी इसका सही ढंग से एक साथ पालन करें तो इस पर काबू पा सकते है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि जब तक पूरी आबादी एक ही बार में दोनों उपाय का सही ढंग से पालन नहीं करती है, तब तक कोरोना वायरस रुकने वाला नहीं है।

अगर सिर्फ सामाजिक दूरी का पालन किया जाता है या सिर्फ मास्क पहना जाता है तब इससे कोरोना वायरस नही रोका जा सकता। उन्होंने कहा है कि इस संक्रमण को रोकने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर टीकाकरण जरूरी है।

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शोधकर्ताओं ने एक ऐसा नेटवर्क मॉडल बनाया है जो आंकड़े आधारित बिंदुओं और किनारों या नॉड्स के बीच की कड़ी को जोड़ता है।

इस मॉडल से कोरोना के प्रसार का पता लगाने के लिए प्रयोग किए जाते रहे हैं। यह मॉडल एक अति संवेदनशील संक्रमित और अलग किए गए या नए पाए गए या फिर मर चुके लोगों के आंकड़े के ढांचे पर आधारित है।

जहां हर नोड एक व्यक्ति को प्रदर्शित कर रहा है। साथ ही इसमें उस व्यक्ति के बारे में स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियां भी है। यह किनारों से जुड़े व्यक्तियों को जोड़ने के बीच होने वाले संपर्कों के बारे में भी जानकारी इकट्ठा करता है।

यह मॉडल लोगों की गतिविधियों में बदलाव का आंकड़ा इकट्ठा करता है। जिसका अर्थ है कि कुछ अत्यधिक स्क्रीन मोड नेटवर्क के अधिकांश लोगों के संपर्क के लिए ज्यादा जिम्मेदार होते हैं।

इस धारणा के द्वारा यह खुलासा होता है कि ज्यादातर लोगों की कुछ ही लोगों से परस्पर बातचीत होती है और कुछ ही लोग कई अन्य लोगों के साथ बातचीत करते हैं।

ऐसे में अलग-अलग बदलाव के रूप में उपायों को सही करने के लिए मास्क पहने हुए और दूसरे सामाजिक दूरी वाले समूहों पर परीक्षण किया गया है।

यह शोध वाशिंगटन विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवेलुएशन से प्राप्त सेलफोन के आधार पर लोगों के आंकड़े इकट्ठे किए गए।

इसमें फेसबुक के द्वारा किया गया सर्वेक्षण में शामिल है। आंकड़ों से यह निष्कर्ष निकलता है कि जो लोग मास्क पहनते हैं वह भी ऐसे हैं जो अपने इधर उधर जाने की गतिविधियां को कम करते हैं।

इसके आधार पर नोट्स को उन व्यक्तियों में विभाजित कर दिया गया है जो नियमित रूप से मास्क पहन रहे हैं और सामाजिक दूरी का पालन कर रहे हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा मॉडल के आधार को मापने के लिए आकड़ो को एकत्रित किया गया। इसमें शोधकर्ताओं ने 14 जुलाई 2020 के बीच सभी 50 राज्यों और कोलंबिया जिले में अधिकतम मामलों का विश्लेषण किया है।

यह वह वक्त है जब नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों ने आधिकारिक तौर पर मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन करने की घोषणा की थी।

इस मॉडल को सार्वजनिक स्वास्थ्य के उपायों के लिए महत्वपूर्ण बताया जा रहा है।

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