कोरोना वायरस एशिया और प्रशांत महासागर के लिए वरदान
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना वायरस एशिया और प्रशांत महासागर के लिए वरदान साबित हो रहा है । संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार हर साल करीब 8 मिलियन टन प्लास्टिक का कचरा समुद्र में फेंक दिया जाता है जिसकी वजह से समुद्री पर्यावरण को भारी नुकसान होता है, इसकी वजह से एक बिलियन समुद्री पक्षी और एक मिलियन समुद्री स्तनपाई जीव समय से पहले ही अपनी जान गवा देते हैं।
वही समुद्र में अक्सर ही माइनिंग, तेल के रिसाव, केमिकल के अलावा महानगरों के सीवेज के प्रदूषण भी पहुंचते रहते हैं, जो समुद्री वातावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। साल 2019 के एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ था कि अकेले हिंद महासागर के एक द्वीप पर 238 टन का प्लास्टिक कचरा मिला था, यहां यह भी बता दें कि हिंद महासागर को 21वीं शताब्दी में सबसे प्रभावी राजनैतिक और आर्थिक ताकत के तौर पर भी देखा जाता है।
भारत की अगर बात करें तो भारत की ब्लू इकोनामी का आधार भी हिंद महासागर ही है और इन समुद्री पर्यावरण की स्थिति एशिया प्रशांत क्षेत्र में फैले महानगरों के लिए चिंता का विषय है। मालूम हो कि एशिया प्रशांत क्षेत्र को ‘मरीन प्लास्टिक क्राइसिस’ का केंद्र भी कहा जाता है। लेकिन कोरोना वायरस की वजह से दुनिया भर में लॉक डाउन है जिसकी वजह से समुद्री वातावरण में काफी सुधार दिख रहा है।
संयुक्त राष्ट्र की ‘इकनोमिक एंड सोशल कमिशन फॉर एशिया एंड पेसिफिक’ की हाल की रिपोर्ट से एक उम्मीद की किरण जगी है कि समुद्री वातावरण में सुधार किया जा सकता है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कोरोना वायरस की वजह से समुद्री पर्यावरण में सुधार देखने को मिल रहा है क्योंकि मानव गतिविधियां और ऊर्जा की मांग तथा कार्बन के उत्सर्जन में अस्थाई रूप से कमी आ गई है और यह पर्यावरण के साथ ही समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अच्छा है ।
इसके बाद एक आवश्यक और बहुप्रतीक्षित उपाय की अगर तलाश की जाए तो उसकी दिशा में आगे बढ़ने में इससे मदद मिल सकती है। अगर महासागरों का स्वास्थ्य बेहतर रहता है तब इसका सीधा असर एशिया ऑफ पैसिफिक क्षेत्र के विकास पर पड़ता है। कोरोना वायरस की वजह से लॉक डाउन है और इसकी वजह से कार्बन उत्सर्जन के साथ ही उर्जा की मांग में कमी आ गई है और इस सब का परिणाम यह हुआ है कि समुद्री पर्यावरण में काफी ज्यादा सुधार हो गया है।
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अब लॉक डाउन के बाद सभी देशों के पास मौका है कि इस अवसर का लाभ उठाएं और एक नई तरीके से शुरुआत करें। संयुक्त राष्ट्र द्वारा यह रिपोर्ट ‘चेंजिंग सेल्स एक्सेलेटरिंग रीजनल एक्शन फॉर सिस्टर इन एशिया एंड पेसिफिक’ नाम के शीर्षक से प्रकाशित हुई है जिसमें कहा गया था कि एशिया और पैसिफिक क्षेत्र में मछुआरों द्वारा मछली पकड़ने की गतिविधियां अधिक होने से, समुद्री प्रदूषण अधिक होने से और जल वायु प्रदूषण जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसकी वजह से समुद्री पर्यावरण के अस्तित्व पर खतरा बढ़ गया है।
लेकिन अगर एशिया पेसिफिक क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले देश उनके संरक्षण की दिशा में निवेश करें और सही से प्रयास करें तो कोरोना वायरस संकट के बाद एक मौका है। इन क्षेत्र की सरकारों को समुद्र के संरक्षण की दिशा में काम करने के लिए एक बेहतरीन अवसर है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि महासागरों की सुरक्षा के लिए समुद्री डाटा में पारदर्शिता लाना और राष्ट्रीय सांख्यिकी प्रणाली को मजबूत करना बेहद जरूरी है।
इस बात का सुझाव में संयुक्त राष्ट्र ने पैसेफिक क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले देशों को दी है। मालूम हो कि एशिया और प्रशांत क्षेत्र भारत के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इस क्षेत्र में मत्स्य पालन में करीब 200 मिलियन से अधिक लोगों के लिए भोजन और रोजगार मिला हुआ है। 80% से भी अधिक अंतरराष्ट्रीय व्यापार समुद्री समुद्री रास्ते से ही होते हैं जिनमें दो तिहाई समुद्री मार्गों का इस्तेमाल एशिया समुद्रों के तहत होता है।
लेकिन एशिया पेसिफिक क्षेत्र के देश के प्रदूषण खास करके प्लास्टिक प्रदूषण इन क्षेत्रों को काफी नुकसान भी पहुंचा रहे हैं। बता दे दुनिया भर के बड़े-बड़े शहरों से 95% से भी अधिक प्लास्टिक कचरा दस नदियों में से 8 आठ नदियां इस हिस्से की नदियों से होता है। गंगा नदी का स्थान इसमें दूसरे स्थान पर है। भारत सरकार द्वारा नमामि गंगे योजना गंगा नदी के सफाई के लिए उठाई गई थी। ऐसे ही योजना की जरूरत समुद्री पर्यावरण के संरक्षण के लिए भी है।
अब आने वाला वक्त बताएगा कि कोरोना वायरस से ऊबरने के बाद भारत सरकार अपने ब्लू इकोनामी को बचाने के लिए आने वाले समय में क्या उपाय करती है !