अगर कुष्ठ रोग में प्रारंभिक अवस्था मे सही उपचार हो तो विकलांगता को रोक जा सकता है
हर साल विश्व कुष्ठ दिवस जनवरी के अंतिम रविवार को मनाया जाता है । जब जनवरी के अंतिम सप्ताह में कोई रविवार नहीं पड़ता है तो अगले महीने के पहले रविवार को कुष्ठ दिवस मनाया जाता है । इस साल 2 फरवरी को विश्व कुष्ठ दिवस मनाया जाएगा । दुनिया भर में विश्व कुष्ठ दिवस शीघ्रता से कुष्ठ रोग उन्मूलन करने के लिए प्रयास बढ़ाने और प्रतिबध्दता के अवसर बढ़ाने के लिए मनाया जाता है ।
बच्चों में होने वाले कुष्ठ रोग से होने वाली विकलांगता के मामले को शून्य तक लाने का लक्ष्य रखा गया है । इसके लिए रोग का जल्दी पता लगाने के साथ ही इस रोग को फैलाने से रोकना का प्रयास तेज करना है । किसी हैनसेन के नाम से भी जाना जाता है । ब्राजील, इंडोनेशिया और भारत में कुष्ठ के मरीज सबसे ज्यादा पाए जाते हैं ।
कुष्ठ रोग का उपचार किया जा सकता है और प्रारंभिक अवस्था में ही यदि इसका पता लग जाए तो इससे होने वाली विकलांगता को रोका जा सकता है । कुष्ठ रोग एक दीर्घकालिक संक्रामक रोग है । यह बेसिलस माइक्रोबैक्टेरियम लेप्रि के कारण होता है । इस रोग में संक्रमण होने के बाद लगभग 5 वर्ष की लंबी अवधि के बाद इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं क्योंकि यह धीरे-धीरे बढ़ने वाला रोग है ।
कुष्ठ रोग में मुख्य रूप से मानव त्वचा, ऊपरी श्वसन पथ की तंत्रिकाए और आंखों व शरीर के अन्य हिस्से प्रभावित होते हैं । कुष्ठ रोग को पासी बैसिलरी और मल्टी बैसिलरी दो बर्ग में विभाजित किया जाता है ।
पासी बैसिलरी एक हल्का रोग है इसमें अधिकतम 5 वर्षों में त्वचा के रंग पीला या लाल द्वारा पहचाना जाता है । जबकि मल्टीबैकिलेरी में त्वचा के घाव मोटी त्वचा और त्वचा के संक्रमण से पहचाना जाता है । भारत सरकार द्वारा सबसे पहले 1955 में राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी और 1982 में मल्टी ड्रग थेरेपी की शुरुआत हुई । एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में विश्व के लगभग 57% कुष्ठ रोगी रहते हैं ।
इस रोग के मामले में जितनी जल्दी जानकारी हो सके और उसका उपचार हो सके यही रोग उन्मूलन की कुंजी है क्योंकि समुदाय में जल्दी कुष्ठ रोगियों का पता लगाने से समुदाय में संक्रमण के स्त्रोतों में कमी आएगी और लोगों में संचार भी रुक जाएगा । उपचार को सुनिश्चित किया जाने का प्रयास सरकार द्वारा हो रहा है और इसके लिए प्रोत्साहन भुगतान भी दिया जा रहा है ।
बैक्टीरिया के द्वारा कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति से यह फैलता है । श्वसन पथ विशेषकर के नाक से संक्रमण व्यक्तियों के शरीर के बाहर निकलने का प्रमुख रास्ता है । इस रोग का कारण अनुपचारित मामलों के साथ नजदीकी और लगातार संपर्क के दौरान नाक व मुंह से उत्सर्जित बूँद द्वारा शरीर में सांस लेने की प्रणाली के माध्यम से इसके शरीर में प्रवेश करते हैं ।
जब बैक्टीरिया शरीर में जाते हैं तंत्रिका और त्वचा में असर होता है । शुरुआती चरण में इस रोग का पता नहीं चल पाता है तो इससे नसों को नुकसान हो सकता है और बाद में यह स्थाई विकलांगता भी उत्पन्न कर देता है ।