फास्टफूड कंपनियां एंटीबायोटिक इस्तेमाल क्यों नहीं रोकना चाहती ?

फास्ट फूड कंपनियां एंटीबायोटिक इस्तेमाल क्यों नहीं रोकना चाहती ?

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ज्यादातर फास्ट फूड कंपनियां जो भी चिकन का इस्तेमाल करती है उनमे एंटीबायोटिक का काफी ज्यादा इस्तेमाल हुआ रहता है और ये कम्पनियाँ एंटीबायोटिक के इस्तेमाल को कम नहीं करना चाहती हैं । जैसा कि मालूम है ज्यादातर फास्टफूड में चिकन जरूर मिला होता है । बता दे ज्यादातर मुर्गियों के पालने वाले एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बिना लक्षण के भी करते है ।

उनके ऐसा करने के पीछे वजह है कि इससे उन्हें मुर्गियो को कम चारा खिलाने के बाद भी एंटीबायोटिक की वजह से उनका वजन बढ़ जाता है । 2014 के एक परीक्षण में पाया गया कि भारत में फास्ट फूड कंपनी जो भी चिकन इस्तेमाल करती हैं उसमें एंटीबायोटिक के अवशेष पाए जाते हैं और यह एंटीबायोटिक बच्चो और बड़ो की सेहत के लिहाज से काफी खतरनाक होते हैं ।

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चिकन वगैरा में ज्यादातर एंटीबायोटिक जैसे कि टायलोसिन, एरिथ्रोमैसिन, सिप्रोफलैक्सिन, एनरॉफलेक्सिन का ही इस्तेमाल होता है । मालूम हो कि इन एन्टीबायोटिक का इस्तेमाल इंसानों में होने वाली कई तरह की गंभीर बीमारियों के इलाज में भी किया जाता है । इन एंटीबायोटिक का इस्तेमाल इंसानों में सांस से जुडी बीमारी और मल मूत्र के मार्ग में संक्रमण होने पर उसके इलाज में प्रयोग होता है ।

जब इन चिकित्सा की दृस्टि से महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक्स का गैर जिम्मेदार तरीके इस्तेमाल होता है तो गैर इंसानी बैक्टीरिया के प्रति प्रतिरोधक क्षमता तेजी से बढ़ जाती है और यह सीधे जीवित या मृत जानवरों से इंसानों में आसानी से पहुंचकर जाते हैं । जिसकी वजह से एंटीबायोटिक के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास हो जाता है  और फिर जब सांस या इस तह से जुड़ी गंभीर बीमारियों में जब एंटीबायोटिक दिया जाता है तो दवाये बेअसर साबित होती है ।

इसलिए एंटीबायोटिक का इस्तेमाल गैर जिम्मेदाराना तरीके से करने पर  सरकार नियम कानून बनाये है पर उनका पालन सही तरह से नही हो रहा । यह भारत के लिए  काफी चिंता का विषय है क्योंकि भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुविधा इतनी अच्छी नहीं है और यहां विनियामक का ढांचा भी इतना मजबूत और कारागार नहीं है ।

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वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके इस्तेमाल पर उपभोक्ताओं और निवेशकों और सिविल सोसाइटी का काफी दबाव रहता है और ये चिकित्सीय रूप से महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक प्रयोग  दुरुपयोग करने पर रोक लगाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । भारत में जितनी भी फास्ट फूड  कंपनियां हैं उनका स्वामित्व विदेशी कंपनियों के पास है और ऐसे में एंटीबायोटिक के इस्तेमाल के प्रति उनकी प्रतिबद्धता है और जो समय सीमा है उसके प्रति वो बहुत ज्यादा सतर्क और गंभीर नहीं है  ।

लेकिन अब यह वक्त की जरूरत है की चिकित्सीय रूप से महत्वपूर्ण इन एंटीबायोटिक के  गैर जिम्मेदाराना तरीके से इस्तेमाल जो चिकन आदि में हो रहा उसे पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाए । इसके लिए सरकार के साथ साथ आमजन को भी जागरूक होना होगा । आज के बच्चों और युवाओं में फास्ट फूड का चलन काफी ज्यादा है इस लिए ऐसे उपभोक्ताओं को उन फास्टफूड के सेवन के प्रति सचेत होने की जरूरत है जिन फास्टफूड में चिकन का इस्तेमाल हुआ हो ।

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