ये फोटो आप सभी को महज तस्वीरे लगती होंगी, लेकिन आप इसे ध्यान से देखेंगे तो इसमें मेरा जीवन मूल्य दिखाई देगा । मैं लोगों से मिल रहा हूँ तो सब एक बात जरूर पूछते है क्या करते हो , शायद आप लोग भी जानना चाहते होंगे, 5 महीने पूर्व दिल्ली से बिहार आया था । एक शिक्षक बनने की सारी शैक्षणिक योग्यता लेकर यह जानते हुए की शिक्षकों को समान काम के समान वेतन नही मिलते हैं ।
जो मेरे लिए दुःख का विषय था लेकिन खुशी इस बात की थी कि अपने जन्मभूमि पर शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने का मौका मिलने वाला था, ये मेरे शिक्षा के क्षेत्र में अपने गाँव मे शिक्षा देने के सपने को साकार करने जैसा था ।
बिहार में प्राथमिक शिक्षक औऱ माध्यमिक शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया शुरू हुई थी मैंने पंचायत -पंचायत और प्रखण्ड -प्रखण्ड 2 महीने घूम कर सिवान,गोपालगंज और छपरा जिले में आवेदन किया फिर उसके आगे की विभागीय प्रक्रिया शरू हुई ।
पूर्व निर्धारित तिथि के भीतर कोई कार्य नही हुआ, 31 मार्च तक नियोजन पत्र देने की तिथि सुनियोजित थी, लेकिन नियोजन प्रक्रिया का मामला हाई कोर्ट में चला गया, फिलहाल इस नियोजन प्रक्रिया को अगले आदेश तक स्थगित कर दिया हैं ।
जो मेरे मन को पीड़ा और दुख पहुचाने के अलावा और कुछ नही हैं, अब प्रकाश डालते हैं अन्य घटनाक्रम पर जो साथ साथ चलते रहें शुरू के 2 महीना तो ज्यादा समय नही मिला । लोगों से मिलने समझने का लेकिन उसके बाद मैंने जीवन को अपने अनुसार जीना शुरू किया, दिल्ली से बिहार आने की खुशी यह थी कि मैं शिक्षक बन के जातिवाद नाम के दीमक को मारना चाहता था ।
लेकिन शिक्षक बनने में विलंब होता देख मैंने अपने विचार धारा से युवाओं को जोड़ने की सोची ,इस मे मुझे हर जाति के लड़कों से संपर्क की जरूरत थी । मेरे पड़ोस के गांव में एक मैदान हैं जिसमें बुनियादी सुविधाओं की तो बात छोड़िए मैदान समतल तक नही हैं ।
फिर भी मैदान के अभाव में कई गांव और पंचायत के लड़के इस मैदान पर दौड़ने आते हैं जो सभी मेरे जैसे ही गरीब और किसान परिवार से संबंध रखते हैं , मैं भी वहाँ जाने लगा , लड़को को समझने लगा सभी गरीबी के मार से तंग हैं शिक्षा उच्च स्तर की पाई नही जिसके वजह अनेकों हैं एक मुख्य बजह गरीबी भी हैं ।
फिर भी जज्बा हैं देश के सेना में भर्ती हो कर देश के सेवा करने का, जिसके लिए सुबह से ही शारिरिक श्रम करते है, मेरा भी नित्य प्रतिदिन मैदान पर जाना जारी था । कभी कभी बात चीत होती थी, सभी मेरे से खुल कर बात चीत करने से हिचकते थे उन्हें लगता था कि मैं दिल्ली से आया हूँ पढ़ा लिखा हु तो मुझ से बात क्या करें, लेकिन मैं अपने स्वभाव के अनुसार सबसे कुछ न कुछ बात करते रहता था ।
फिर बिहार में भयंकर बारिश 5-6 दिनों तक लगातार होती रही जिस से बिहार में कई जिलों में महामारी की स्थिति उत्पन्न हो गई थी उस भयंकर बारिश में मैदान का बाहरी किनारा जो हैं जिसपर सभी लड़के दौड़ते हैं वो दह गया इस से दौड़ बाधित होने लगा उसी समय कोई सेना की कोई भर्ती भी आने वाली थी लड़के सभी चिंतित थे कि क्या किया जाय सबने मुझ से कहा कि आप कुछ कर सकते हैं।
आप कुछ कीजिये,ये समय सभी लड़को से जुड़ने के लिए विशेष अवसर के रुप मे था मैंने कहा कि” मैं “कुछ नही कर सकता लेकिन “हम सब” बहुत कुछ कर सकते हैं फिर सभी मेरे बातों को समझने लगे,दिल्ली में रहने के वजह से स्थानीय विधायक या मुखिया से मेरा कोई संपर्क नही था लेकिन दिल्ली में ही रहने के वजह से महाराजगंज के सांसद जी से मेरा संर्पक था ।
मैंने उनको फोन किया सारी जानकारी उनको विस्तार से बताई उन्होंने कहा कि उस पंचायत के मुखिया से एक बार मिलिए वो आप लोगों का काम करा देंगे नही कराएंगे तो मुझ से दुबारा बोलियेगा,यह मैदान मेरे पंचायत में नही आता हैं तो मुझे मुखिया जी के घर का पता भी नही पता था ,अगले दिन सुबह कुछ लड़कों के साथ तेवथा पंचायत के मुखिया जी के निवास पर पहुँचे ।
उनको सारी जानकारी दी गई तो उन्होंने कहा कि मिट्टी भरवा दिया जाएगा लेकिन 4-5दिन तक कुछ नही हुआ दुबारा फिर सभी लड़को के साथ उनके यहाँ पहुँचे 4-5दिन में कुछ नही होने से इस बार लड़के गुस्से में थे ।
ये बात मुझे पता था इसलिए सबके गुस्से का इजहार हो इस लिए मैं चुप रहा तब तक मुखिया जी को बात समझ मे आ गई थी कि अब देर करना मुश्किल की घंटी बजाने जैसा होगा । उन्होंने आनन फानन में ट्रैक्टर और JCB वाले को फ़ोन करना शरू किया फोन का स्पीकर on था ,उस दिन ट्रैक्टर तो मिला लेकिन JCB खाली नही था ।
मैदान मरम्मत का काम अगले दिन तय हुआ अगले दिन JCB और ट्रैक्टर शाम तक दोनों आया ,मैदान मरम्मत का कार्य आरंभ हुआ 2 घंटे बाद JCB का मालिक आ पहुँचे बोले कि तेल नही हैं 2 घण्टा चलाने का ही बात हुआ है मैदान का काम पूरा हुआ नही था मुखिया जी का फ़ोन बंद था । मुझे समझते देर नही लगी कि आज काम अधूरा रह गया तो पूरा नहीं होगा ।
फिर हम लोगों ने JCB मालिक से आग्रह किया कि हमलोग तेल लाते हैं आप थोड़ा देर और चला दीजिये वो मान गए खुद मैं एक लड़के के साथ गया 700 का पेट्रोल लाये । 1 घण्टा JCB चला मैदान मरम्मत का कार्य रात्रि के 9 बजे तक सम्पन्न हुआ ।
अब इस मैदान पर दौड़ने आने वाले लड़को की संख्या में खूब वृद्धि हुई हैं, इस मैदान को राज्यस्तरीय मैदान बनाया जाय ऐसी मेरी निरंतर कोशिश हैं, इस मैदान पर दौड़ने वाले 100 से ज्यादा लड़के सेना में भर्ती हो माँ भारती की सेवा कर रहें हैं ।
इस कार्य के बाद लड़को में उम्मीद की किरण जगी सब मुझ से इस दौरान घुल मिल चुके थे और मेरे विचार से प्रभावित भी हुए है तस्वीरों में जो लड़के हैं उनमें हर जाति के लड़के है – हरिजन, मुस्लिम, साह, यादव, कोयरी, कुम्हार, धानुक, यादव,पंडित, राजपूत, भूमिहार आदि, कहने का मतलब है कि हर जाति के लड़के जो मेरे गाँव के आसपास रहते हैं सबके साथ एक साथ बैठना ,एक साथ खाना यह सब करने का मुख्य उद्देश्य था ।
सबको समानता पर लाना जातिवाद को समाप्त करना,मुझे नही मालूम की मैं कितना सफल हुआ हु जातिवाद को तोड़ने में लेकिन इतना जरूर हुआ हूँ कि अब जब मैं दिल्ली जाने की बात करता हूँ तो सभी जाति के लड़के जो अब मेरे लिए मित्र और परिवार के सदस्य के रूप में हैं वो एक स्वर में बोलते है ।
आप मत जाइए हमें आपकी जरूरत है और आपको हमारी जरूरत है इन्ही आपसी जरूरतों को पूरा करने में मेरा मन इतना ज्यादा यहाँ रम गया हैं कि शहरों की चकाचौंध भरी दुनिया भी मुझे अंधेर नगरी की तरह अब लगने लगी हैं ,मेरा संकल्प हैं कि नौकरी करने के लिए अब मैं अपने गाँव को छोड़ कर शहर नही जाऊँगा ।
गाँव को ही शहर के जीवन जैसा बनाने की कोशिश करूंगा । कोशिश करने वालों की हार नही होती, बिना संघर्ष किये जयजय कार नही होती ।।अंत मे इतना कहना है जो रास्ता गाँव से शहर को जाता हैं वही रास्ता शहर से गांव के तरफ भी आता हैं ।
मेरे गाँव के आसपास के लड़कों ने जो प्यार और स्नेह मुझे दिया हैं वो कभी कम नही होने दूँगा । भारत माता की आत्मा गांव में ही बसती हैं । हम अपनी माता के आत्मा को छोड़कर कही नही जाएंगे -प्रफुल ।।
नोट -इस पोस्ट में जितने फोटो संलग्न हैं ये सभी फ़ोटो वास्तविक घटनाक्रम के जानकारी के पुष्टि के लिए पर्याप्त हैं ।।