लॉक डाउन के है नुकसान, कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा!
लॉक डाउन के है नुकसान, कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा ये कहना है विशेषज्ञों का । पूरे दुनिया में कोरोना वायरस जिस तरह से फैला हर देश परेशान है। वैज्ञानिक दिन-रात इसके लिए वैक्सीन और इलाज ढूंढने में जुटे हुए हैं। लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है । भारत समेत दुनिया के कई देशों ने दावा किया है कि उन्होंने वैक्सीन खोज रही है और उम्मीद जताई गई है कि जल्द ही इसे विकसित कर लिया जाएगा, लेकिन जितने भी वैक्सीन खोजी जा रही हैं वह सब अभी ट्रायल फेस में है।
लेकिन हाँ इस बात की पूरी उम्मीद है कि जल्द ही किसी देश के वैज्ञानिक इस बात की घोषणा करेंगे कि उन्होंने कोरोना वायरस के लिए इलाज और वैक्सीन खोज लिया है। कोरोना वायरस की शुरुआत जनवरी में हुई थी। जब इसके मामले चीन के बाहर सामने आने लगे तो इससे बचाव को ही इसका इलाज माना गया और कोरोना वायरस से प्रभावित होने वाले ज्यादातर देशों ने अपने यहां लॉक डाउन किया जिससे कोरोना वायरस के प्रसार को रोका जा सके।
इससे कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने में मदद तो मिली लेकिन इससे निजात नही मिल पाई। वहीं लॉक डाउन के अपने नुकसान भी हैं। लॉक डाउन की वजह से दुनिया की अर्थव्यवस्था गिरने लगी और एक तरह से ठप हो गई। बेरोजगारी हर देश में तेजी से बढ़ने लगी और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को काम और आय मिलना बंद हो गया और इस तरह की कई सारी व्यावहारिक समस्याएं भी लोगों के सामने आने लगी। लगभग 5 महीने से करोना वायरस अपना कहर बरपा रहा है।
भारत में भी 2 महीने से ज्यादा समय बीत चुका है लॉक डाउन को । भारत में लॉक डॉउन में धीरे-धीरे रियायत दी जा रही हैं। भारत समेत दुनिया के कई देशों में लॉक डाउन में छूटे दी जा रही है जिससे जिंदगी को चालू रखा जा सके क्योंकि लॉक डाउन में जिंदगी एक तरह से ठहर सी गई।
वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बात की भी आशंका जाहिर की है कि शायद कोरोनावायरस का इलाज या इसके लिए कोई वैक्सीन कभी नहीं बन पाएगी और लोगों को इस वायरस के साथ ही जीना होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत जैसे देशों के लिए सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता के सिद्धांत को फॉलो करने की सलाह दी है क्योंकि भारत की अधिकांश जनसंख्या युवा है और युवाओं की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी मानी जाती है।
लेकिन यहां यह जानना बेहद जरूरी है कि भारत के युवाओं की जीवन शैली उचित न होने की वजह से वे कम उम्र में ही कई सारी बीमारियों जैसे डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर से ग्रसित हैं। फास्ट फूड के सेवन करने से, सिगरेट, तम्बाकू, शराब और ड्रग्स के सेवन से उनकी प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो गई है । बता दें कि ब्रिटेन ने भी अपने यहां हार्ड इम्यूनिटी का ही सिद्धांत लागू किया था लेकिन जब कोरोनावायरस के मामले और कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या बढ़ने लगी तब ब्रिटेन ने अपने यहाँ लॉक डाउन कर दिया था।
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अब इस बात की संभावना भी बढ़ गई है कि कोरोना वायरस प्राकृतिक न होकर कृतिम वायरस है। इसलिए इसका इलाज ढूंढ पाना भी आसान नहीं है। मालूम हो सर्दी, खांसी, जुखाम जैसे साधारण प्राकृतिक वायरल इन्फेक्शन का भी आज तक कोई इलाज नहीं खोजा जा सका है लेकिन स्मॉल पॉक्स, चिकन पॉक्स जैसे संक्रामक बीमारियों का इलाज खोजा जा सका है और उसके लिए वैक्सीन विकसित हो चुकी है।

कोई भी वैक्सीन रोग प्रतिरोधक क्षमता पर काम करती है। वैक्सीन में कमजोर कीटाणु को इंजेक्शन के जरिए शरीर में पहुंचाया जाता है। इसलिए जब वैक्सीन का टीका लगाया जाता है तब बुखार आ जाता है। उसके बाद अल्प मात्रा में पहुंची कीटाणुओं के प्रति शरीर प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है।
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कोरो ना वायरस को लेकर आशंका जताई गई है कि यह कृतिम है इसलिए इस वायरस कृतिम वायरस से ही हराया जा सकता है। इसके लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग एक बेहतर उपाय है। जिस तरह की से जेनेटिक इंजीनियरिंग की सहायता से कई पौधों के ऐसे बीज निर्मित किए जाते हैं जिनसे पैदावार अधिक होती है और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक होती है। ऐसे फसल को जीएम (जेनेटिक मॉडिफाइड) फसल के नाम से जाना जाता है।
मालूम हो कि इसी तरह की पहली बैक्सीन हेपेटाइटिस बी के लिए भी बनाई गई थी और इसे 1986 में मंजूरी मिली थी। ऐसे में कोरोनावायरस के लिए भी वैज्ञानिकों को जेनेटिक इंजीनियर पर आधारित कृतिम वायरस का निर्माण करना होगा जो कोरोनावायरस को हराने में सक्षम हो ।