क्या होती है ग्रीन हाउस गैस? यह कैसे तापमान में बढ़ोतरी के लिए है जिम्मेदार
वातावरण में छह प्रमुख ग्रीन हाउस पाई जाती है। जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, हाइड्रो फ्लोरो कार्बन, परफ्लोरो कार्बन, सल्फर हेक्साफ्लोराइड गैस शामिल है।
यह गैस तापीय अवरक्त सीमा से अधिक ऊर्जा को अवशोषित कर लेती हैं और ग्रीन हाउस के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार मानी जाती हैं।
जलवायु परिवर्तन और ग्रीन हाउस गैसें –
जैसे-जैसे वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा बढ़ रही है या दूसरे शब्दों में कहें तो जैसे-जैसे वातावरण में इन ग्रीन हाउस गैसों का आवरण मोटा होता जा रहा है। यह ज्यादा ऊष्मा को रोक ले रही हैं। जिसकी वजह से धरती का तापमान दिन-ब-दिन बढ़ रहा है।
समस्या क्या है :-
औद्योगीकरण क्रांति के बाद इंसान ज्यादा मात्रा में जीवाश्म ईंधन और इसके अन्य स्रोतों का प्रयोग करके ग्रीन हाउस गैसों का अधिक उत्सर्जन करने लगा है।
बहुत ही कम समय में इंसानों द्वारा काफी ज्यादा मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य दूसरे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कर दिया गया है।
और इनकी प्राकृतिक तरीके से सफाई नहीं की जा सकती है। जिसकी वजह से असंतुलन आ गया है जो कि जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कारण है।
क्या होती है कार्बन डाइऑक्साइड गैस ?
कार्बन डाइऑक्साइड गैस एक महत्वपूर्ण हीट स्ट्रैपिंग ग्रीन हाउस गैस मानी जाती है। यह मानव गतिविधि जैसे वनों की कटाई करना, जीवाश्म ईंधनो को जलाना, सांस लेना, ज्वालामुखी विस्फोट और प्राकृतिक आपदाओं के जरिए वातावरण में फैलती हैं।
15 फरवरी 2021 को एक आंकड़ा जारी किया गया था जिसमें दिखाया गया है कि साल 2005 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 380 पार्ट्स प्रति मिलियन था।
जो कि 2010 में बढ़कर 390 पार्ट्स प्रति मिलियन पहुंच गया। 2015 में यह 400 के आंकड़े तक पहुंच गया और 2019 में यह 410 पार्ट्स प्रति मिलियन के आंकड़े पर पहुंच गया था।
फरवरी 2021 तक यह आंकड़ा 415.8 पार्ट्स प्रति मिलियन पहुंच गया है। जिससे यह साफ स्पष्ट हो जाता है कि पिछले कुछ सालों में कितनी तेजी से कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में बढ़ा हैं।
अगर पिछले कुछ आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले 171 सालों में मानवीय गतिविधियों की वजह से वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर साल 1875 की तुलना में अब तक करीब 48 फीसद तक बढ़ चुका है।
इससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो चीज पिछले 2000 सालों में नहीं हुई वह पिछले एक एक शताब्दी में ही हो गई। यह प्राकृतिक कारण नहीं बल्कि मानवीय द्वारा से बेहद तेजी से फैला है।
जैसे-जैसे मानव विकास करता गया और तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ता गया। वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी बेहद तेजी से बढ़ा है।
जिसका खामियाजा पर्यावरण असंतुलन के रूप में भुगतना पड़ रहा है। वैश्विक तापमान में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। जिससे आने वाले समय में मानव जाति के अस्तित्व के सामने संकट खड़ा हो जाएगा।