मित्रता की मिसाल : हिंदू मित्र ने मुस्लिम दोस्त का तर्पण किया और सात दिन तक श्रीमद्भागवत का पाठ करवाया
कुछ लोगों के लिए दोस्ती धर्म के समान होती है और कुछ लोग दोस्ती के धर्म को मौत के बाद भी अपने अलग अंदाज में निभाते हैं।
ऐसे ही एक शख्स मध्य प्रदेश के सागर जिले के चतुरभाटा गांव के रहने वाले पंडित रामनरेश दुबे हैं, जिन्होंने सड़क हादसे में मारे गए अपने मुस्लिम दोस्त सैयद वाहिद अली का तर्पण और श्राद्ध हिंदू रीति रिवाज से करके उनकी आत्मा की शांति के लिए श्रीमद्भागवत का पाठ करवा रहे हैं।
इन दिनों हिंदू धर्म के अनुसार पितृपक्ष चल रहा है। वो अपने दोस्त के लिए पितृपक्ष में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का पाठ करवाया रहे और चौथे दिन अपने मित्र का तर्पण करके उन्हें तिलांजलि दी है। इस तरह से उन्होंने अपने दोस्त के मरने के बाद भी मजहब से अपनी दोस्ती का उम्रदराज किया है।
पंडित रामनरेश दुबे के मित्र एडवोकेट सैयद वाहिद अली की 62 साल की उम्र में सड़क हादसे मे पिछले साल असमय मौत हो गई थी। पंडित दुबे और वाहिद अली बचपन से दोस्त थे और वाहिद अली की मौत से उनका बचपन का साथ छूट गया।
इसलिए पंडित रामनरेश दुबे ने अपने दोस्त की अकाल मौत के लिए सोचा कि क्यों न अपने दोस्त का तर्पण किया जाये। क्योंकि हिंदू धर्म के अनुसार अकाल मौत के लिए तर्पण जरूरी होता है।
इस साल जब पितृपक्ष आया तब उन्होंने अपने पितरों के साथ-साथ अपने दोस्त वाहिद अली का भी तर्पण किया है।
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पंडित रामनरेश दुबे इस बारे में बताते हैं कि वाहिद मेरे बचपन से दोस्त हैं। सागर जिले के गोपाल में वह रहा करते थे और उन्होंने हर मुश्किल वक्त में साथ दिया है, जब विषम परिस्थितियों में परिवार वालों ने साथ छोड़ दिया तब भी वाहिद अली उनके साथ खड़े रहे।
लेकिन करीब डेढ़ साल पहले वाहिद अली और उनकी पत्नी का ग्वालियर से लौटते वक्त एक सड़क हादसे में अकाल निधन हो गया।
पंडित रामनरेश बताते हैं कि अपने दोस्त के इस तरह सड़क हादसे में निधन के बाद उन्होंने अपने दोस्त की आत्मा की शांति के लिए निधन के बाद ही तर्पण करना चाहा था और इसी मकसद से उन्होंने इस साल 7 दिन की श्रीमद्भागवत कथा का मूल पाठ भी करवाया था।
कथा के तीसरे दिन पंडित नरेश दुबे ने अपनी पत्नी और अन्य पूर्वजों को तिलांजलि दी और चौथे दिन अपने मित्र की आत्मा की शांति के लिए उन्होंने अपने मित्र का तर्पण किया।
दुबे ने अपने दोस्त वाहिद अली के बारे में कहा कि वह इस सिर्फ एक वकील ही नही बल्कि एक बेहद नेक इंसान भी थे। उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी भी पैसों को महत्व नही दिया था।
इसलिए उनके मोक्ष और आत्मा की शांति के लिए तर्पण करना, उन्हें अपना फर्ज लगा। उन्होंने अपने दोस्ती के फर्ज की खातिर अपने दोस्त का तर्पण किया।
इस बारे में वाहिद अली के बेटे वाजिद अली का कहना है रामनरेश चाचा और अब्बा की दोस्ती चोली दामन का साथ जैसे थी। अब चाचा ने मेरे पिता के लिए तर्पण कर रहे हैं जो कि एक बहुत ही अच्छी बात है।
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अग्नि पुराण के अनुसार तर्पण करने वाले पंडित नरेश दुबे का कहना है कि पक्ष में हम अपने सभी पूर्वजों के साथ-साथ अपने उन लोगों के लिए भी तर्पण कर सकते हैं जो हमारे लिए बेहद प्रिय है।
इसमें हमारे दोस्त, कर्मचारी भी शामिल हो सकते है। इसीलिए पंडित दुबे ने अपने मित्र वाहिद अली का तर्पण किया है।
मित्र द्वारा मित्र को तिलांजलि देना भारतीय संस्कृत में रहा है। दुबे के निवेदन पर ही यह धार्मिक प्रक्रियाएं आयोजित कराई गई। वही इस बारे में मध्य प्रदेश के सागर जिले के मुख्य शहर मुफ्ती तारिक अहमद ने कहा है कि मित्रता के लिए कोई जाति या धर्म नही होता है।
यदि कोई हिंदू दोस्त अपने मुस्लिम दोस्त के लिए कुछ कर रहा है तब यह एक भाईचारे की मिसाल है और इससे सभी को नसीहत लेने की जरूरत है। यह सभी लोगों के लिए एक मिसाल है। आइये अपने दोस्ती का धर्म निभाये और आपस में मिलजुल कर रहे।