हांगकांग संघर्ष निष्कर्ष तक पहुचेगा या नही …!
हांगकांग में पिछले काफी समय से चीन के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है । हांगकांग के युवा पीढ़ी अपने अधिकारों को लेकर स्पष्ट सोच रखती है । उसका मानना है कि अगर आज वह अपने अधिकारों के लिए खडे नहीं हुई तो वह सदैव के लिए अपने अधिकार को खो देगी ।
वही चीनी शासन मान रहे हैं कि यदि हांगकांग अपने उद्देश्य में सफल हो जाता है तो यह स्थिति तिब्बत और शिनझियांग में भी यह उत्पन्न हो सकती है । ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या हांगकांग संघर्ष अपने निष्कर्ष तक पहुंचेगा या फिर चीन कोई बड़ी कार्यवाही करेगा ।
दरअसल हांगकांग अपने मूल्य पर आगे बढ़ना चाहता है जिसमें स्वतंत्रता है, शासन की एक अलग व्यवस्था, मूल्य और लोकतंत्र है । वहीं चीन में एक दलीय व्यवस्था है और आजीवन राष्ट्रपति पद पर रहने वाला एक व्यक्ति होता है और वही देश की व्यवस्था का ताना-बाना बनाता है और सभी प्रकार की ताकत है उसमें निहित होती है ।
लेकिन इसके बावजूद वह स्वतंत्रता, लोकतंत्र और बहुसंख्यक से डरता है । हांगकांग में चल रहा आंदोलन स्वतंत्र आंदोलन बन गया है । हांगकांग चीन से बाहर निकलने का प्रयास कर रहा है ।
क्रिसमस के मौके पर बड़ी संख्या पर चीनी सीमा से लगे शहर में हांगकांग के लोगों ने एकत्रित होकर चीनी व्यवसायियों को वहां से चले जाने की मांग की और प्रदर्शन किया । हांगकांग लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए अकेले लड़ाई लड़ रहा है । हालांकि हांगकांग के कुछ हाथों में अमेरिकी झंडे जरूर दिखाते हैं कि अमेरिकी कांग्रेस द्वारा आंदोलनकारियों को समर्थन है ।
हांगकांग में सड़कों पर रोजाना हजारों लोगों की भीड़ होती है जो विभिन्न प्रकार के नारों के साथ सुबह से शाम तक डटे रहते हैं । यह विरोध प्रदर्शन बिल के खिलाफ से शुरू हुआ था जो हांगकांग की हैसियत और हांगकांग के निवासियों की आजादी को खतरे में डालने वाला था ।
लेकिन धीरे-धीरे यह विरोध चीनी विरोध में बदल गया । पहले यह विरोध प्रत्यर्पण कानून में लाए गए बदलाव की वजह से शुरू हुआ था । चीन की कोशिश यह होगी कि एक देश दो व्यवस्था को समाप्त करके वन कंट्री वन सिस्टम में से बदल दिया जाए ।
जबकि 1997 में ब्रिटेन ने हांगकांग को चीन को हस्तांतरित करते हुए उससे यह गारंटी ली थी कि चीन हांगकांग में वन कंट्री टू सिस्टम के तहत काम करेगा और 2047 तक लोगों की स्वतंत्रता और अपनी कानूनी आस्था को बनाए रखेगा । लेकिन चीन अपने वादे से मुकरता रहा । 2014 में हांगकांग में लोकतंत्रवादियो ने अंब्रेला मूवमेंट चलाया और उसके बाद 2019 में फिर से प्रत्यर्पण बिल को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ जो अभी तक जारी है ।
सवाल उठता है कि आखिर क्यों चीन ने 1997 में किए गए समझौते का उल्लंघन किया और हांगकांग किस बात से डर रहा है । असल में हांगकांग के साथ ही ताइवान तिब्बत और शिंजियांग जैसे राज्य है जो यह मानते हैं कि चीन उन पर कब्जा किए हुए हैं और उस पर अपना दावा करता है ।
ताइवान का मानना है कि चीन के साथ सहयोग करते हुए अपना विशिष्ट चरित और पहचान बनाए रखना उसके लिए संभव नहीं है । ताइवान एक लोकतांत्रिक देश है और अपना संसदीय लोकतंत्र बनाए रखना चाहती है । अब देखना यह है कि हांगकांग अपने संघर्ष में सफल होता है या फिर पराजित होता है । इस समय चीन तमाम क्षेत्रीय और सामाजिक अंतर विभाजन और दो से गुजर रहा है।