मानव विकास सूचकांक जिसमें भारत को 131वीं रैंक मिली है
अभी हाल में ही साल 2020 के लिए मानव विकास सूचकांक (HDI – Human Development Report) की रिपोर्ट जारी कर दी गई है, जिसमें भारत के खराब प्रदर्शन की वजह से भारत की रैंक में गिरावट दर्ज की गई है।
यह गिरावट दो स्थान की है एक तरह तो पहले से ही मानव विकास सूचकांक में भारत का प्रदर्शन खराब रहा है और इसलिए पिछड़ गया है।
मानव विकास सूचकांक :-
हर साल मानव विकास सूचकांक 189 देशों के लिए संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा जारी किया जाता है।
भारत को साल 2020 में 131 वी रैंक मिली है वहीं पिछले साल भारत की रैंक 129 थी। इस तरह से भारत को इस साल 2 पायदान का नुकसान हुआ है।
बता दें कि मानव विकास सूचकांक जिसे एचडीआई के नाम से भी जाना जाता है, यह देश में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के मापन का कार्य करती है।
मानव विकास सूचकांक द्वारा जारी की गई सूची में पहला स्थान नार्वे को मिला है। इसके बाद दूसरा, तीसरा, चौथा और पांचवा स्थान क्रमश आयरलैंड, स्विट्जरलैंड और आइसलैंड को मिला है। इस तरह से एचडीआई के टॉप फाइव देश –
- नॉर्वे
- आयरलैंड
- स्वीटजरलैंड
- हांगकांग
- आइसलैंड है
मानव विकास सूचकांक के जरिए हमें देश के लोगों के स्वास्थ्य व शिक्षा तक पहुंच के बारे में जानकारी मिलती है, साथ ही लोगों के जीवन स्तर के बारे में भी पता चलता है।
मानव विकास सूचकांक का इतिहास :-
मानव विकास सूचकांक की शुरुआत पाकिस्तानी अर्थशास्त्री ने की थी। पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक को मानव विकास सूचकांक बनाने के लिए जाना जाता है।
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इस सेंडेक्स में भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का भी महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि यह सूचकांक भारतीय अर्थशास्त्री डॉ अमर्त्य सेन की मानवीय क्षमता की अवधारणा पर ही बनाया गया है।
अमर्त्य सेन का मानना था कि लोग अपने जीवन में बुनियादी चीजों जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य और समुचित जीवन स्तर को पाने में सक्षम है या नही इसके बारे में पता करना चाहिए और मानव विकास सूचकांक इन्हीं बिंदुओं पर आधारित है।
मानव विकास सूचकांक के प्रमुख बिंदु :-
मानव विकास सूचकांक के तीन बिंदु प्रमुख रूप से शामिल किए जाते हैं इन्हीं के आधार पर मानव विकास सूचकांक का निर्माण किया जाता है –
- पहला – जन्म के समय जीवन प्रत्याशा
- दूसरा – संभावित स्कूली शिक्षा
- तीसरा – पीपीपी पर आधारित प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय
बता दें कि मानव जीवन के लिए रोटी, कपड़ा, मकान मूलभूत आवश्यकताएं हैं। लेकिन इसके अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ हवा, अच्छी सड़कें, सूचना का अधिकार, रोजगार आदि जीवन जीने के लिए अनिवार्य आवश्यकताएं मानी जाती हैं और देश के प्रत्येक नागरिकों को इन मूलभूत आवश्यकता की सुविधा मिलना आवश्यक होता है क्योंकि तभी देश उन्नति की राह पर आगे बढ़ सकता है।
भारत का सूचकांक इतना कम क्यों :-
जैसा कि माना जाता है दुनिया में सबसे तेजी से विकसित होने वाली अर्थव्यवस्था भारत है, लेकिन इसके बावजूद भारत का मानव विकास सूचकांक इतना कमजोर है कि वह टॉप 100 देशों की लिस्ट में भी शामिल नही हो पाता है।
दरअसल यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि जिस देश की शिक्षा, स्वास्थ्य स्थिति बेहतर होती है वहां के लोगों की कार्य क्षमता भी दूसरों से बहुत ज्यादा होती है।
भारत की आधी आबादी से ज्यादा आबादी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है और भारत के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों के पास पर्याप्त मात्रा में मूलभूत सुविधाएं भी नही उपलब्ध होती हैं।
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ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या यदि देश के सभी नागरिकों को हर सुविधा उपलब्ध करवा दिए जाये तो क्या भारत मानव विकास सूचकांक में बेहतर पायदान पर आ सकता है तो जवाब है हां आ तो सकते है, लेकिन यह इतना आसान नहीं है क्योंकि मार्केट मॉडल इसके लिए बदलना पड़ेगा।
इसके अलावा देश भर में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सार्वजनिक निवेश में भारी मात्रा में निवेश करने की जरूरत होगी।
लेकिन भारत को समय रहते मानव विकास सूचकांक के क्रम में निम्न स्तर की इस स्थिति से जल्द से जल्द उबरना होगा, तभी आने वाले सालों में भारत में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि देखने को मिली और भारत तेजी से विकास कर सकेगा।