आर्थिक गतिविधि को तेज करने के लिए न्यायिक और प्रशासनिक सुधार पर भी ध्यान दें
कोरोना वायरस महामारी के बाद विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई। हमारे देश में बेरोजगारी बढ़ गई। लेकिन हमारे देश के राजनीतिज्ञ रोजगार की समस्या पर ध्यान नहीं देते हैं।
अगर कहीं बेरोजगारी की समस्या पर सार्वजनिक रूप से चर्चा होती भी है तो उसे कभी भी गंभीरता से नही लिया जाता।
कोरोना वायरस महामारी के बाद भी इस मुद्दे को उतनी प्राथमिकता नही दी जा रही है। लेकिन आने वाले समय में हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या गंभीर रूप धारण कर सकती है।
पूंजीवादी व्यवस्था का विकास करके सामाजिक मुद्दों से बचने की कोशिश हो रही है। लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था के कारण भारत मे विकासक मुद्दों को प्राथमिकता मिल जाती है।
एक अनुमान के मुताबिक आने वाले समय में बेरोजगारी की समस्या बढ़ने वाली है क्योंकि कोरोनावायरस महामारी से हमारे देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। हालांकि महामारी से पहले भी देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति अच्छी नही थी।
जैसे कि पता है अर्थव्यवस्था में गिरावट होने का सीधा असर सामाजिक स्तर पर देखने को मिलता है और इसके प्रभाव से कोई भी क्षेत्र अछूता नही रहता। जिसका युवाओं और रोजगार सृजन पर भी पड़ना स्वाभाविक सी बात है।
बेरोजगारी की समस्या :-
हमारे देश में इन दिनों में बेरोजगारी चरम पर है। लेकिन कोरोनावायरस महामारी से पहले भी बेरोजगारी काफी अधिक थी। लेकिन हमारे देश के अधिकांश राजनीतिक दल इस पर कभी ध्यान ही नहीं दिये।
2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान अधिकांश राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में रोजगार के मुद्दे को नही उठाया। अर्थव्यवस्था के विकास के लिए रोजगार होना आवश्यक है ।

उदारीकरण के बाद हमारे देश की अर्थव्यवस्था संभाली है लेकिन वैश्विक प्रक्रिया से जोड़ने के बाद रोजगार के अवसर भले ही बढ़े लेकिन टिकाऊ व्यवस्था अभी भी नही बन पाई है।
विदेशी निवेश के सहारे अर्थव्यवस्था को संभालने और रोजगार पैदा करने की नीतियों का परिणाम यह है कि बेरोजगारी बढ़ रही है
निजी हाथों में पूंजीकरण से बेरोजगारी बढ़ी –
उदारीकरण की नीतियों से निजीकरण की प्रक्रिया को देश में बढ़ावा दिया जाने लगा। कई क्षेत्र के बड़े-बड़े उपक्रमों जो रोजगार सृजन करते थे, उनमें भागीदारी घटने लगी। इस नीति ने विदेशी पूंजी का आयात बढ़ाया।
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घरेलू पूंजीपतियों की संपत्ति बढ़ने लगी। पिछले दशकों में दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में भारत के पूंजीपतियों का नाम भी शामिल हो गया।
निजी हाथों में पूंजी के संकेंद्रण की वजह से राज्य सरकार के हाथों में रोजगार देने की क्षमता कम हो गई।
युवा समृद्ध होगा तभी तरक्की के आयाम खुलेंगे –
देश में बढ़ती बेरोजगारी के चलते युवाओं में असंतोष पनप रहा है। युवा यह मांग कर रहा है कि रोजगार के विषय में देश में खुलकर बहस हो।
राजनीतिक पार्टियां अपने घोषणापत्र में इसे मुख्य एजेंट के तौर पर रखें और इस पर अमल करते हुए रोजगार के तमाम अवसर सृजित करें। जिससे युवाओं को रोजगार प्राप्त करने में आसानी हो।
राजनीतिज्ञों को और सभी जनमानस को यह समझना होगा कि देश का युवा जब खुश और समृद्ध रहेगा तभी देश तरक्की के नए आयाम पर आगे बढ़ सकेगा।