°°° संघ एक सोच °°°
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक परम पूज्य श्री गुरु जी को विचार में एकता स्थापित करने वाला माना जाता है। उनका जीवन तपस्या, त्याग और राष्ट्रभक्ति से परिपूर्ण था उनका जीवन। उन्होंने संगठन को सुदृढ़ और अनुशासित करने के साथ साथ संघ के कार्य को गति प्रदान करने में अति महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया । पूज्य श्री गुरूजी के बिचार के प्रभाव से हरेक आयु वर्ग के लोग प्रभावित थे । उनका अध्ययन व चिंतन भारत के लिए दिशा निर्देशक व प्रेरक पुंज बन गये ।
मानव कल्याण, राष्ट्रसेवाऔर ज्ञान प्राप्ति के लिए उन्होंने सदैव युवाओं को प्रेरित किया। ऐसे राष्ट्रऋषि की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि वंदन।साथ मे आज संघ को समझने का प्रयास कीजिये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापना का मूल उद्देश्य अखंड भारत के आजादी और देश के नागरिकों का सर्वांगीण विकास था जिसे प्राप्त करने के लिए स्वमसेवको के द्वारा शाखा आरंभ किया गया जो हमारे स्वयंसेवक पिछले 90 साल से अनवरत शाखा चलाते आ रहे हैं, आज उसी तपस्या का परिणाम हैं की सारी दुनिया रास्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हर क्रियाकलापों को देख रही है।
किसी भी राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक का सर्वागींण विकास नहीं हो सकता जब तक वो राष्ट्र विकास के पथ पर अग्रसर नहीं होता ।संघ अपने स्थापना काल से ही स्वयंसेवकों के सहारे राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक का शारीरिक, सामाजिक एवं बौद्धिक विकास पर ही ध्यान देता आ रहा है। संघ की स्थापना के पहले जो हिन्दू अपने आप को हिन्दू कहने मात्र से ही डर जाता था आज संघ की शक्ति पाकर गर्व से अपने आप को हिन्दू कहता है। संघ की स्थापना का मूल उद्देश्य शक्ति की उपासना ही है।
सज्जन एवं देशभक्तों के हाथों में इस तरह की शक्ति सोभा देती है , यही जब दुष्ट व देशद्रोहियों के हाथों में होने से समाज असहज महसूस करता है एवं समाज में भय उत्पन्न होता है। संघ को समझने के लिए डॉ. हेडगेवार को समझना होगा जो एक गरीब ब्राहाण के घर पैदा हुए और विश्व के सबसे बड़े अनुशासित संगठन को राष्ट्र के लिए खड़ा कर दिया और ये बताया कि हिन्दू समाज की एकता देश को एक सूत्र में बांध विश्व गुरु बनने की सपना को साकार कर सकता हैं । आज उन सपनों की पूर्ण प्राप्ति पर ही देश आगे बढ़ रहा हैं ।
लेखक : प्रफुल्ल गौतम