स्लम बस्ती :आखिर कब इनके हालात में सुधार होंगे

स्लम बस्ती :आखिर कब इनके हालात में सुधार होंगे

भारत में जहां बुनियादी सुविधाओं को मजबूत करने की कोशिश की जा रही है, वही दूसरी तरफ बुनियादी सुविधाओं से दूर शहरीकरण का कारण मलिन बस्तियों में आभाव देखने को मिल रहा है।

आये दिन भारत में बदलाव और स्मार्ट सिटी के लिए योजनाएं घोषित की जाती हैं। भारत सरकार द्वारा स्लम एरिया को डिवेलप करने के लिए भी कई योजनाएं हैं। लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं दिख रहा है।

दिल्ली का संगम विहार इलाका दक्षिण दिल्ली में बसा स्लम बस्ती का एक इलाका है, जहां पर घुसते ही हर तरफ कचरा, पानी से बजबजाती नालियाँ देखने को मिल जाते हैं। यह इलाका पानी की किल्लत से जूझ रहा है।

यहां का जल स्तर इतना नीचे जा चुका है कि हैंडपंप बेकार हो चुके हैं और टैंकरों द्वारा पानी पहुंचाया जा रहा है। चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों और प्रशासन द्वारा बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं। लेकिन आज भी इन गंदी बस्तियों की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है।

एक तरफ हमारे देश को जहां स्मार्ट सिटी बनाने की योजना हो रही है, मुफ्त में वाईफाई दिए जा रहे हैं। वहीं इन स्लम एरिया में बिजली, पानी, स्वच्छता, अस्पताल, पार्क, ट्रांसपोर्ट आदि बुनियादी ढांचा का अभाव देखने को मिलता है।

आंकड़े के अनुसार भारत में हर छठा नागरिक इन स्लम बस्तियों में रहने के लिए आज मजबूर है। यह स्लम बस्तियों ऐसी रहती है जो इंसानों के रहने लायक ही नही है।

आपको भारत के हर शहरी क्षेत्र में इस तरह के स्लम बस्तियों देखने को मिल जाएंगी। आंकड़ो से पता चलता है कि आंध्र प्रदेश का हर तीसरा शहरी स्लम बस्तियों में रहता है वहीं ओडिशा में हर 10 घरों में से 9 में जल निकासी से जुड़ी समस्या देखने को मिलती है।

भारत के हर बड़े शहर में है झुग्गी बस्तियां :-

भारत के लगभग 65% शहरों में स्लम बस्तियों देखने को मिलती हैं। शहरों की चकाचौंध भरी दुनिया के बावजूद इन इलाकों में अंधेरा है। देश में हर 10 में से 6 झुग्गी झोपड़ियों के रहने वाले लोग बदबूदार नालियों के आस-पास रहते हैं।

आजादी के इतने साल बीत जाने के बावजूद यहां पर बुनियादी सुविधाओं का अभाव देखने को मिलता है। इन मलिन बस्तियों को देखकर सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस विकसित समाज और राजनैतिक गलियारों और प्रशासन की बेरुखी से ये लोग किस तरह का जीवन यापन कर रहे हैं।

आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी स्लम क्षेत्र में रहने वाले 35% घरों में पीने के लिए साफ पानी उपलब्ध नहीं है। 63% घरों में गंदे पानी की निकासी के लिए कोई भी उचित प्रबंधन की व्यवस्था नही है। यहां की नालियां खुली और बदबूदार हैं।

मलिन बस्तियों का प्रतिशत :-

एक आंकड़े के अनुसार सबसे ज्यादा मलिन बस्तियां आंध्र प्रदेश में है। यहां शहरी आबादी का 36.1% हिस्सा मलिन बस्तियों में ही निवास करता है।

इसके अलावा छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, जम्मू कश्मीर जैसे शहरी आबादी वाले क्षेत्र में भी बड़ी संख्या में लोग मलिन बस्ती में रहने के लिए आज भी मजबूर हैं।

डाउन टू अर्थ में प्रकाशित स्टेट ऑफ इंडिया एनवायरनमेंट इन फिगर्स 2019 के आंकड़े के अनुसार उड़ीसा में मलिन बस्ती में रहने वाले लोगों में 64% लोगों के घरों में स्वच्छ पानी का अभाव है। वहीं 90% घरों में जल निकासी की व्यवस्था नहीं है।

लगभग 12 लाख परिवार रहता है स्लम बस्तियों में :-

देश में स्लम बस्तियों में रहने वाले लोगों की बात की जाए तो सबसे ज्यादा आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के लोग हैं, जो स्लम बस्तियों में रहते हैं।

दक्षिण भारत के 3 राज्यों में भारत की मलिन बस्तियों का लगभग 39% आबादी साफ पानी से वंचित है।

भारत के स्मार्ट शहरों में से 27 शहरों में 411 बस्तियों के पुनर्विकास परियोजना के लिए 3797 करोड़ रुपए की परियोजनाओं का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

क्या सच होगा “सबका अपना घर”, का सपना :-

दुनियाभर की एक चौथाई शहरी आबादी लगभग स्लम बस्तियों में निवास करती है। आने वाले 10 वर्षों में भारत की 50% आबादी शहरों में रहने लगेगी।

भारत की वर्तमान शहरी आबादी कुल जनसंख्या का 28% है। बेतहाशा शहरी वृद्धि से मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होने की संभावना है।

जून 2005 में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) राज्य एवं केंद्र प्रशासित राज्यों के लिए सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।

जिसमें शहरों में रहने वाले गरीब तबके एवं कमजोर वर्ग के लोगों को आवासीय सुविधा मिलने की बात कही गई है।

केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी के अनुसार सभी राज्यों को 2022 तक स्वीकृत हो चुके मकानों को शीघ्रता से पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।

अब तक इस योजना के तहत 81 लाख घरों के निर्माण की मंजूरी दे दी गई है जिसमें से 47 लाख घर निर्माणाधीन है और लगभग 26 लाख घर बनकर तैयार हो चुके हैं।

इस बात की उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में भारत में हर किसी का, अपने घर का सपना सच हो जाएगा।

लेकिन सवाल यह भी है कि क्या स्लम बस्तियों का उद्धार हो सकेगा? क्या स्लम बस्तियों म जीवन जीने के लिए मजबूर इन लोगों की स्थिति में सुधार होगा? या इनकी स्तिति जस की तस बनी रहेंगी।

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