20 मार्च : विश्व गौरैया दिवस पर जाने इनके संरक्षण केलिए इस कालेज ने किया अनोखा प्रयास
गौरैया एक छोटी चिड़िया है जो कभी हमारे घर आंगन में खूब चहेका करती थी लेकिन जंगलों के कटान और शहरों की बढ़ती आबादी दिन ब सिन होते विकास और इमारतों के निर्माण की वजह से गौरैया लुप्तप्राय पंछियों की श्रेणी में आ गया है । ऐसे में इनके संरक्षण के लिए हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है, जिसका मकसद लोगों को गौरैया के संरक्षण के प्रति जागरूक करना है ।
आज हम बताने जा रहे हैं गौरैया संरक्षण के संबंध में एक मिसाल देने वाली प्रयास की । मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में स्थित जीबीएस कॉलेज के द्वारा गाया गौरैया और इस तरह की पंछियों के संरक्षण के लिए विशेष प्रावधान किया गया है । कॉलेज ने पक्षियों के लिए ये जो प्रयास किया वो अपने आप में एक मिसाल है ।
जहां एक तरफ आज के समय में ऊंची ऊंची खूबसूरत कालेजों की बिल्डिंग देखने को मिलती है, वही इस कॉलेज ने अपने परिषद की खूबसूरती से थोड़ा समझौता किया और नतीजा यह है कि आज सैकड़ों की संख्या में इस कॉलेज की इमारत में पक्षियों के घोंसले पाए जाते हैं, जहां पर पक्षियों ने अपना बसेरा बना रखा है ।
इंदौर में स्थित जीएसबी कॉलेज के परिसर में दीवारों पर हजारों की संख्या में छेद है जिनमें गौरैया और अन्य पक्षी घोंसला बनाकर रहते हैं । कॉलेज परिसर के पास में ही एक तालाब भी बनाया गया है जिसे गौरव पॉइंट के नाम से जाना जाता है यहां पर इन पंछियों के लिए दाना पानी की व्यवस्था रहती है ।
कॉलेज की बिल्डिंग के अंदरूनी और बाहरी दीवार पर बने हुए सैकड़ों की संख्या में ये छेद देखने में भले ही भद्दे लगते हैं और परिसर की खूबसूरती को कम करते हैं, लेकिन जब इन गड्ढों से गौरैया जैसे पंछी निकल के देखते हैं तो यह बेहद सुंदर लगता है ।
गौरैया की चहचहाहट और चहलकदमी से यह पूरा परिसर हमेशा गूंजता रहता है । कॉलेज प्रबंधन ने भले ही अपने कॉलेज के बिल्डिंग की खूबसूरती से समझौता किया हो लेकिन इसका मोल अनमोल है ।
इस कॉलेज की इमारत 30 हजार वर्ग फीट में बनी हुई है जिसमें सैकड़ो गड्ढे बीम पडने के दौरान ही बना दिए गए थे ताकि गौरैया इसमें आसानी से अपना घोंसला बनाकर रह सके ।
कॉलेज प्रबंधक का इस तरह के गड्ढों के बनाने के पीछे मकसद यह था कि इससे छात्रों को प्रकृति संरक्षण के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके और पर्यावरण को, विकास की वजह से जो क्षति होती है, उसकी कुछ हद तक पूर्ति की जा सके और यह कॉलेज लोगों के लिए एक मिसाल है कि वे इस तरह अपने घरों में बहुत सारे गड्ढे ना सही एक या दो बनाकर दो चार पक्षियों को तो अपने घर में रहने की जगह आसानी से दे ही सकते है ।
इस कॉलेज के कैंपस डेवलपमेंट ऑफिसर राजेंद्र सिंह सलूजा का कहना है कि जब यहां पर कालेज परिसर बनाने की बात आई तो उन्होंने देखा कि यहां पर कई तरह के पक्षी रहते हैं इसलिए उन लोगों ने निर्णय लिया कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे पक्षियों को संरक्षित किया जा सके ।
क्योंकि इंजीनियर केवल आर्थिक लाभ की दृष्टि से सोचते और उस हिसाब से बिल्डिंग का निर्माण करते तो उन्होंने इंजीनियरों की सलाह के बिना अपने परिवार के बड़ों से बात की और उनके सुझाव से इमारत की खूबसूरती से थोड़ा समझौता करके पंछियों के लिए परिसर में गड्ढे बनवा दिए, जिससे पक्षी वहां पर अपना घोंसला बनाकर अपना आशियाना बना सके ।
यह गड्ढे दीवारों में ढाई से तीन इंच तक रखे गए हैं । इसके अलावा इस कैंपस कई सारे बार्ड हाउस भी बनाए हैं, जहां पर पक्षियों के लिए 24 घंटे दाना पानी की व्यवस्था रहती है । पक्षियों की वजह से अक्सर दीवार गंदी हो जाती हैं लेकिन उन्हें समय-समय पर साफ करवा लिया जाता है ।
इसी तरह के प्रयासों की बदौलत स्टेट ऑफ इंडिया वर्ल्ड की रिपोर्ट में देखने को मिला है कि 2006 से 2013 के बीच छोटे गाँव और कस्बों में गौरैया की संख्या में लगभग 10% की बढ़ोतरी देखने को मिली है और बड़े मेट्रो शहरों में गौरैया की संख्या में 25 से 40% तक की कमी दर्ज की गई है ।