रामसेतु की संरचना का अध्ययन करने के लिए Scientist समुद्र की सतह तक जाएंगे

रामसेतु की संरचना का अध्ययन करने के लिए Scientist समुद्र की सतह तक जाएंगे

रामेश्वर से लेकर श्रीलंका के बीच रामसेतु  की तस्वीर सबसे पहले नासा ने जारी की थी। नासा सहित अलग-अलग संस्थानों ने इस पर कई शोध कर चुके हैं। लेकिन अभी भी इसका रहस्य समुद्र के गर्भ में ही छिपा है।

इसके रहस्य से पर्दा उठाने के लिए वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद की राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (National institute of ocionography) गोवा अनुसंधान शुरू करने वाला है।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मार्च से यह अनुसंधान शुरू हो जाएगा। इस शोध में रामसेतु का स्ट्रक्चर कैसे है इस पर अध्ययन किया जाएगा।

साथ ही इस बात का भी अध्ययन किया जाएगा कि भूगर्भीय हलचल का इस पर किस प्रकार से असर पड़ता है।

एनआईओ (NIO) के निर्देशक प्रोफ़ेसर सुनील कुमार ने कहा है कि Ramsetu या एडम पुल (Adem Dam) की लंबाई लगभग 48 किलोमीटर की है।

कहा जाता है कि यह भगवान राम ने रावण की लंका तक पहुचने के लिए बनाया था अर्थात भारत से श्रीलंका जाने के लिए।

बता दें कि यह रामसेतु भारत और श्रीलंका के बीच बना है। रामायण में भी इसका उल्लेख है। वैज्ञानिक इसका आधार तलाशने की कोशिश कर रहे हैं। यह पहली बार है जब Indian Scientists द्वारा इस तरह का कोई अभियान शुरू होने जा रहा है।

Driling नही होगी (No Driling ): –

राम सेतु की संरचना के बारे में जानने के लिए वैज्ञानिक किसी भी प्रकार के Driling नहीं करेंगे। उनका सिर्फ अवलोकन ही किया जाएगा।

यह सारे परीक्षण प्रयोगशालाओं के भीतर ही किये जाएंगे। प्रोफ़ेसर सिंह ने कहा है कि शास्त्रों में बताया गया है कि पुल में लकड़ी की पेंटिंग का उपयोग किया गया था।

तो ऐसा हो सकता है कि अब यह जीवाश्म बदल गए हो। ऐसे में निशानों को तलाशने का प्रयास किया जाएगा।

भारत की 7500 किलोमीटर से अधिक है तट ( The Coast Of India Is More Than 7500 Kilometers ) : –

बता दें कि भारत में 7500 किलोमीटर से भी अधिक का विशाल तट है। महासागर में अतीत के अभिलेखों को खजाना हो सकता है।

एनआईओ द्वारा अब तक द्वारिका का अध्ययन किया गया है जिसके प्रारंभिक तौर पर कुछ प्रमाण देखने को मिले हैं। जैसे कि द्वारका गुजरात का हिस्सा था।

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समुद्र के जलस्तर में वृद्धि होने की वजह से यह हिस्सा शायद डूब गया होगा। 3 से 6 मीटर गहराई तक पत्थरों के लंगर देखने को मिले हैं। यहां पर प्राचीन बंदरगाह के अवशेष भी पाए गए हैं।

इसी तरीके से तमिलनाडु के महाबलीपुरम के लापता मंदिर का भी अध्ययन शुरू हो गया है। वर्तमान में उड़ीसा तट से कई जहाज के मलबे का अध्ययन किया जा रहा है।

पुरातत्व के साथ वैज्ञानिक आधार का मिलन होगा (Scientific Theories Will Be Reconciled With Arcology ): –

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन एक सलाहकार बोर्ड इस पर पहले से ही शोध कार्य कर रहा है। उन अध्ययनों को आधार बनाकर आईओ के वैज्ञानिक अपना शोध कार्य प्रारंभ करेंगे।

दोनों शोधों के परिणामों को मिलाया जाएगा और इस तरह से पानी के नीचे पुरातात्विक अवशेषों के बारे में जानकारियां मिलेंगी।

कार्बन डेटिंग से राम सेतु पुल की उम्र का पता लगेगा (Carbon Dating Will Determine The Age Of Ram Setu Bridge) : –

पानी के नीचे बने इस पुरातात्विक संरचना के बारे में कार्बन डेडिंग काफी मददगार हो सकती है, जिसके जरिए सेतु की उम्र का पता लगाकर जानकारियां जुटाई जाएगी।

शोधकर्ताओं द्वारा यह जाने का प्रयास होगा कि यह किस काल खंड में बनाया गया था। कलाकृतियों की खुदाई करने के प्रयास के साथ-साथ संरचना की रूपरेखा भी तैयार करेंगे।

सेतु के पास उथला इलाका ( Shallow Area Near Setu ):-

वैज्ञानिकों का कहना है कि रामसेतु के आसपास का इलाका उथला है। पानी की गहराई 3 से 4 मीटर से अधिक नही है। यहां तक पहुंचने के लिए स्थानीय नावों का उपयोग किया जाएगा क्योंकि इस जगह पर जहाज नही जा सकते हैं।

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