दोस्तों!! इस बीमारी ने मेरा बहुत कुछ छीना है। आज विश्व TB दिवस है इसलिए आज मैं आप लोगों से कुछ साझा करना चाहता हूं। TB एक खतरनाक बीमारी है । अगर समय पर इसका सही इलाज नही होता तो इंसान को अपनी जान गंवानी पड़ती है। कुछ सालों पहले तक ये एक लाइलाज बीमारी थी । तब इसकी सटीक दवा खोजी नही गयी थी। तब TB ( तपेदिक) अगर किसी को होती थी तो उस व्यक्ति को मजबूरन अपनी जान गंवानी पड़ती थी। लेकिन आज ऐसा नही है । आज इसका सटीक इलाज उपलब्ध है। बस जरूरत है इसकी जागरूकता की।
मैं आप लोगों से अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करना चाहूंगा :—
मैं भी इसी बीमारी का शिकार रहा हूँ । इस बीमारी ने मेरी जिंदगी को बदल के रख दिया। आज से लगभग 10 साल पहले इस बीमारी ने मुझे अपनी चपेट में उस वक्त ले लिया जब मैं अपने भविष्य की खोज में था। अपने घर से दूर मैं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था । तैयारी अच्छी चल रही थी और कोचिंग सेंटर तथा आम लोगों में ये चर्चा होने लगी थी कि मैं शायद 1 साल में किसी अच्छी सरकारी जॉब में सेलेक्ट हो जाऊंगा। मैंने पढ़ाई पर तो पूरा फोकस किया लेकिन शरीर का ध्यान नही रख सका। मेरा शरीर कमजोर हो रहा था और कई दिनों तक बीमार रहने के बाद मुझे पता चला कि मेरे अंदर TB की बीमारी आ चुकी है। हालांकि शुरुआत में ही इसकी जानकारी मुझे हो गयी और मैंने TB का इलाज ( तब 9 महीनों का कोर्स) शुरू कर दिया।
इस बीच मैं तैयारी भी करता रहा। लेकिन होना कुछ और था। शुरुआत में दवाओं ने अच्छा असर किया लेकिन बाद में बीमारी घातक हो गयी। मुझे तैयारी बीच मे ही छोड़नी पड़ी। मेरे फेफड़ों में पानी आने के साथ साथ इसने मुझे पूरी तरह से अपनी गिरफ्त में ले लिया। कुछ दिनों तक हॉस्पिटल में रहकर फेफड़ों से पानी निकालने की प्रक्रिया जारी रही। उसके बाद मुझे अपनी पढ़ाई बन्द करनी पड़ी और मैं घर वापस आ गया। इसके बाद कई अच्छे डॉक्टर्स को दिखाने के बाद भी वो बीमारी को कवर नही कर सके। और मेरी हालत खराब होती चली गयी। संभवतः अपने शहर के सबसे अच्छे CHEST डॉक्टर से मैंने इलाज कराया लेकिन वो भी मुझे ठीक करने में असमर्थ रहे।
हालात यहां तक पहुंच गए कि उन्होंने हमें 2 उपाय बताए –
उन्होंने मेरे परिजनो से कहा कि या तो आप इनका इलाज अमेरिका जा के कराएं ( क्योंकि उन्होंने अपने अनुभव से TB की जो दवाएं भारत में उपलब्ध थीं उन्होंने उनका उपयोग कर लिया था लेकिन कोई फायदा नही हो रहा था) या फिर दूसरा विकल्प उन्होंने बताया कि इन्हें किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दें ( अर्थात TB के सामने हथियार डाल दें)। लेकिन मेरे बड़े भाई और अन्य शुभचिन्तकों ने हार नही मानी और इन दोनों विकल्पों में से कुछ नही किया। उन्होंने और अच्छे डॉक्टरों की खोज की जो शहर में उपलब्ध थे उन्ही में से एक हैं डॉ. एस. के. कटियार।
वहां पर जब मुझे ले जाया गया तब तक मैं बेकार हो चुका था । वजन लगभग 33 KG बचा था और मैं खुद के पैरों पर चलने में असमर्थ हो चुका था। मैं पूरी तरह से दूसरों पर आश्रित हो चुका था। लगभग 7- 8 महीने मेरी दुनिया बिस्तर तक ही सीमित रही। टॉयलेट ,बाथरूम हर जगह मैं दूसरों पर ही निर्भर हो चुका था। इतनी ताकत भी मुझमे नही बची थी कि मैं खुद से उठकर बैठ भी पाऊँ, और ऐसा लगभग 6 महीने से ज्यादा चला । मेरी कानों की आवाज जा चुकी थी। डॉ.एस . के. कटियार के पास जाना मेरी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय रहा।
मेरे लिए वही आखिरी उम्मीद बचे थे, और ईश्वर ने मुझे वहां पहुंचाकर मुझे जिंदगी दे दी। वहां जाने के बाद मुझे इलाज नए सिरे से शुरू करना पड़ा। मुझे MDR STAGE की TB हो चुकी थी ( ये वो स्टेज है जहां TB के इलाज की उपलब्ध दवाएं बेअसर हो जाती हैं) । डॉ. स. के. कटियार के पास पहुंचने के बाद मुझे फिर से इलाज की पूरी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। वहां से मेरा इलाज 27 महीने चलता रहा।अन्ततः मुझे दवाएं फायदा करने लगीं।धीरे धीरे मेरा स्वास्थ्य सुधरने लगा।और मैं खुद से चलने फिरने लगा।
धीरे धीरे बीमारी जाती रही और मैं स्वस्थ होता गया।
इस बीच मेरी पढ़ाई बहुत पीछे छूट चुकी थी लेकिन अब मुझे इसकी कोई बहुत परवाह नही थी। जैसा कि मेरे एक डॉक्टर ने कहा था कि #जान है तो जहान है । ये वाक्य मुझे आज भी याद है और इसका अनुभव मैंने बहुत अच्छे से कर लिया था। अब मुझे किसी भी चीज की तलब नही थी । बीमारी के दौरान मैं बहुत सारे अनुभवों से गुजरा। इस बीमारी ने मुझे ऐसे अनुभव दिए जो जीवन भर काम आएंगे।
#दोस्तों इतना बड़ा मैसेज लिखने और अपने व्यक्तिगत जीवन से रूबरू कराने का मेरा एक ही उद्देश्य है कि आप # #लोगों में से हर कोई इस चीज का ख्याल रखे कि #जीवन मे अपना स्वास्थ्य खोकर कुछ भी पाने योग्य नही है चाहे वो कितना भी बहुमूल्य क्यों न हो ।