लेजर से हुए अल्ट्रासाउंड से मिलेगी सही रिपोर्ट और त्वचा को भी नही होगा कोई नुकसान
अभी तक पारंपरिक तरीके की अल्ट्रासाउंड से त्वचा और आंखों को नुकसान पहुंचता था । लेकिन अब वैज्ञानिकों ने पारंपरिक अल्ट्रासाउंड के विकल्प के तौर पर लेजर सिस्टम पर आधारित अल्ट्रासाउंड विकसित किया है जिससे त्वचा और आंखें महफूज रहेंगे । यह एक ऐसी प्रणाली है जो मरीजों के भीतर के हिस्सों की तस्वीर साफ-साफ ले सकती है और इसमें जोखिम भी बेहद कम है ।
अमेरिका में स्थित मैसाच्युसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी वैज्ञानिकों के अनुसार पारंपरिक अल्ट्रासाउंड मशीन को मरीज के शरीर से संपर्क कराने की जरूरत होती थी और इस प्रयोग की एक सीमा होती है क्योंकि ऐसा करने से छोटे बच्चे,संवेदनशील त्वचा या जले हुए शरीर की जांच सही तरीके से नहीं हो पाती थी ।
अब वैज्ञानिकों ने इसका एक विकल्प खोजा है जिसमें लेजर के जरिए अल्ट्रासाउंड किया जाएगा । लाइट साइंस एंड एप्लीकेशन में प्रकाशित अपने लेख में शोधकर्ताओं ने इंसानों के लिए एक लेजर अल्ट्रासाउंड मशीन का जिक्र किया है । इसके लिए शोधकर्ताओं ने कई वालंटियर की कलाई को स्कैन किया और त्वचा के लगभग 6 सेंटीमीटर नीचे तक की मांसपेशियों, वसा, हड्डियों के ऊतकों में सेल्स की विशेषताएं देख सकेगा ।
लगभग 8 मीटर की दूरी से लेजर का इस्तेमाल करके वालंटियर की तस्वीर को देखा गया और यह पारंपरिक अल्ट्रासाउंड के जैसे ही थी । इस शोध करने वाले शोधकर्ता ब्रायन डब्लू का कहना है कि लेजर अल्ट्रासाउंड से हासिल सफलता अभी अपने प्रारंभिक चरण में है । शोधकर्ता ने कहा “ जरा कल्पना कीजिए कितना अच्छा हो जब हम केवल एक प्रकाश के पुंज को जरिए शरीर के विभिन्न अंगों का अल्ट्रासाउंड कर सकेंगे और सबसे बड़ी खास बात यह है कि इस प्रक्रिया के दौरान त्वचा को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होगा ।
इसकी सहायता से बीमारी का पता लगाने का यह एक बेहतरीन तरीका होगा और अल्ट्रासाउंड करने के लिए मशीन को मरीज के शरीर से संपर्क करने की जरूरत भी नहीं होगी” । शोधकर्ताओं ने इस शोध को करने के लिए एक विशेष तरंग में लेजर के जरिए प्रकाश दशा में भेजते हैं जो रक्त वाहिकाओं द्वारा अवशोषित हो जाती है ।

लेजर की वजह से गर्म होने के कारण रक्त वाहिका तेजी से फैलती हैं और फिर शांत होकर अपने मूल अवस्था में आ जाती है यह प्रक्रिया तब तक होती है जब तक की लेजर का दूसरा तरंग उसमें प्रवेश करें । इस प्रक्रिया से यांत्रिक कंपन ध्वनि तरंगों को पैदा करते हैं और वापस ऊपर की ओर आते हैं ।
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जहां तक जाने वाले सिग्नल पकाने वाला यंत्र इसका पता लगा लेता है और पिक्चर के रूप में बदल देता है । हालांकि शोधकर्ताओं ने इस तकनीक के संबंध में कहा है कि अभी भी ध्वनि तरंगों का पता लगाने के लिए डिटेकटर मशीन को मरीज के शरीर से सीधे संपर्क करने की जरूरत पड़ती है ।
लेकिन यह परंपरागत अल्ट्रासाउंड की तुलना में काफी बेहतर है और इसके परिणाम भी बिल्कुल सही आते हैं और इससे शरीर को किसी भी प्रकार से नुकसान नहीं पहुंचता है । आने वाले समय में इसमें और सुधार देखने को मिलेगा और यह एक बेहतर तकनीक साबित होगी ।