आज विश्व साइकिल दिवस है।मुझे एक अरसा हो गया साइकिल चलाए हुए। साइकिल मेरे जीवन का अहम हिस्सा रही है। तमाम लोगों की तरह मैंने भी अपने संघर्ष का तमाम समय साइकिल से ही गुजारा है।
वह चाहे 10 km दूर कालेज आना- जाना हो या फिर 15 km दूर कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट जाना।ये राहें मैंने साइकिल से ही नापी हैं। और तो और किसी कागजी कार्यवाही हेतु तहसील मुख्यालय जाना हो या दुकान चलाते समय किराने का सामान ढोना। सब साइकिल से ही हुआ।
भारतीय जनमानस के लिए साइकिल जीवन की धुरी रही है। मुझे नही मालूम कि भारतीयों ने साइकिल का उपयोग कब से करना शुरू किया लेकिन इतना मालूम है साइकिल के बिना ग्रामीण जीवन की कल्पना करना बेमानी है।
भारत की करीब 72%आबादी गांवों में निवास करती है और गांवों में ऐसा कोई घर नही होगा जिसमे साइकिल न रही हो। यद्यपि अब समय आगे बढ़ा है।
साइकिल की जगह मोटरसाइकिल ने ले ली लेकिन तब भी साइकिल की उपयोगिता खत्म नही हुई। भारतीय ग्रामीण के जीवन से साइकिल निकाल देना उसके दिल का एक हिस्सा छीन लेने जैसा है।
जब तक आम भारतीय साइकिल से चलता था तब तक उसकी रफ्तार धीमी जरूर थी लेकिन जीवन मे सुकून था,शांति थी। इतनी भागदौड़, बेचैनी,कहीं पहुंचने की जल्दी नही थी।
आदमी आज से अधिक तब स्वस्थ रहता था जब साइकिल उसके हाथ मे और पैर उसके पैडल पर थे।साइकिल हाथ से छूटी तो अच्छा खासा व्यायाम भी छूट गया।
मोटरसाइकिल आपको कम समय में अधिक दूरी तक पहुंचा भले ही देती हो लेकिन उस दूरी के आप तब तक कर्जदार बने रहेंगे जब तक कि उसी अनुपात में श्रम नहीं कर लेते।
यदि श्रम नही किया तो उस दूरी का कर्ज आपको किसी न किसी बीमारी के माध्यम से चुकाना होगा। प्रकृति हर चीज का हिसाब रखती है।
यह तथ्य जरा भी चौंकाने वाला नही है कि कार से चलने वाला व्यक्ति साइकिल से चलने वाले व्यक्ति की तुलना में अधिक बीमारियों से ग्रसित है।
शायद यही कारण है कि पुराना आदमी उतनी उम्र तक जी लेता था जिसकी आज कल्पना करना भी मुश्किल नजर आता है।
चूंकि दुनिया विकास की दौड़ में अंधी है सो फिर से साइकिल युग मे तो शायद ही कोई लौटना चाहे लेकिन इतना जरूर किया जा सकता है कि हम उतनी शारीरिक मेहनत कर खुद को स्वस्थ रख सकें।
