विश्वगीताप्रतिष्ठान का गीता स्वाध्याय
विगत दिवस विश्व गीता प्रतिष्ठान का दूसरे लॉकडाउन के बाद पहली बार छिंदवाड़ा नगर के गीता प्रेमियों के लिए प्रत्यक्ष (ऑफलाइन) और छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट और नरसिंहपुर जिलों के गीता अनुरागियों के लिए ऑनलाइन गीता स्वाध्याय श्रीअनगढ़ हनुमान मंदिर में आयोजित हुआ।
पूज्य स्वामी नागेन्द्र ब्रह्मचारी जी महाराज के मुख्य आतिथ्य, सिवनी जिला सह संयोजक अखिलेश तिवारी की विशेष उपस्थिति ए्वं नेमीचन्द व्योम के संचालन में श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 13 श्लोक 1२से 22का स्वाध्याय किया गया।
शंखनाद के उपरांत ओम् म्यूजिकल ग्रुप के बाल कलाकारों-स्वतिक,ओमऔर शिवम द्वारा प्रेरणा गीत,महामंत्र संकीर्तन गुरु वंदना की संगीतमय प्रस्तुति की गई।
ध्यान योग, स्तुति वंदना , गायत्री साधना , गीतामृतं व गीता माहात्म्य के मध्य मंगल सिंह मालवी ने सुभाषित, शंकर लाल साहू ने अमृत वचन और अनुराधा तिवारी ने सूक्ति अर्थ सहित प्रस्तुत किया। संचालक नेमीचंद व्योम ने भगवत् गीता क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग के श्लोकों का आदर्श वाचन और सभी उपस्थित गीता अनुरागियों ने अनुकरण वाचन किया।
व्यक्तिशः श्लोकवाचन अजय सिंह वर्मा, गिरवर सिंह गौतम, प्रमोद नारद, शंकर लाल साहू,देवेंद्र चौरसिया, महेश दत्त नायक, दिनेश कुमार अग्रवाल,शेषराव वाघ,राधे सिकंदरपुरे,जगदीश शर्मा, भगवंत राव सोनी,कृपाराम डेहरिया,गोपीचंद राय,अनुराग शुक्ला, निरपतसिंह वर्मा, महेश वाघ आदि के द्वारा किया गया।
निर्मलजी उसरेठे(संस्कृताचार्य),अवधेश तिवारी(पूर्व वरिष्ठ उद्घोषक आकाशवाणी एवं साहित्यकार)तथा सुरेन्द्र वर्मा(पूर्व प्राचार्य व वरिष्ठ साहित्यकार) की उपस्थिति उल्लेखनीय है।
स्वामी नागेन्द्र ब्रह्मचारी ने विशेष व्याख्यान में कहा कि-क्षेत्र अर्थात शरीर और क्षेत्रज्ञ अर्थात शरीर के भीतर विद्यमान जीवात्मा है। जीवात्मा ही परमात्मा का स्वरूप है।
श्रीमद्भगवद्गीता में क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ की बात आई है। साधारण शब्दों में इसे किसान और खेती कहा जा सकता है। हम सब कृषक हैं जो कर्म की खेती करते हैं। फिर हमारा कर्म, फल-रूप में हमें प्राप्त होता है।
लेकिन उसका संपूर्ण फल परम- शक्ति के अधीन है। यदि कर्म निष्काम है तो हमें उसका विशिष्ट फल प्राप्त होता है और सकाम है तो उसका अलग फल होता है।
वैसे हर मनुष्य की यह धारणा होती है कि मेरे कारण ही मेरा परिवार चल रहा है, अपने परिवार के सारे कार्य मैं स्वयं कर रहा हूँ। मेरे बेटे,पत्नी, माता-पिता सब के जो कार्य हो रहे हैं, मेरे द्वारा संपन्न हो रहे हैं, मेरे बुद्धि-बल से हो रहे हैं, लेकिन वास्तव में इनको करने वाला कोई और होता है।
वह परम शक्ति हमें प्रेरित करके सारे काम करवाती रहती है और हम यंत्रवत् करते रहते हैं। इसी को मानस में कहा गया है-
उमा दारु जोषित की नाईं। सबहिं नचावत राम गुसाईं।।
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नेमीचन्द व्योम
विश्वगीताप्रतिष्ठानं छिंदवाड़ा
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